Buy BOOKS at Discounted Price

Upbhoktavad Ki Sanskriti

Class 9th Hindi क्षितिज भाग 1 CBSE Solution
Exercise
  1. लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?
  2. आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?…
  3. लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?…
  4. आशय स्पष्ट कीजिए- (क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद…
Rachna Aur Abhivyakti
  1. कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी-वी- पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए…
  2. आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन? तर्क…
  3. पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति’पर विचार व्यक्त…
  4. आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?…
Bhasha Adhyayan
  1. धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।इस वाक्य में ‘बदल रहा है’ क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है-…

Exercise
Question 1.

लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?


Answer:

लेखक ने समाज में बढ़ रहे उपभोक्तावाद पर चिंता व्यक्त की है। सुख पाने की होड़ में आज लोग उत्पादों पर निर्भर हो गए हैं। लोगों के लिए सुख की परिभाषा बदल गई है। लोग आंतरिक सुख से ज्यादा बाहरी दिखावे को ही सुख मानने लगे हैं। हमारी जरूरतों के लिए उत्पाद तैयार किए जाते हैं लेकिन लोग अपनी जरुरत पूरी करने के वजाय उसे वेजा उपयोग करने में आनंद अनुभव करते हैं| जाने—अनजाने लोगों का चरित्र बदल रहा है। लेखक का मानना है कि ‘उपभोग सुख’ही सुख नहीं हैं। संसार एवं मानव के जीवन में अन्य प्रकार के सुख भी हैं जैसे- शारिरिक, मानसिक और अन्य प्रकार के सूक्ष्म आराम| इन सभी को भी सुख की श्रेणी में रखकर इन्सान को मात्र उपभोक्तावाद से बचना चाहिए|



Question 2.

आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?


Answer:

दुनिया में संसाधन बहुत सीमित मात्रा में हैं, जनसँख्या तेजी से बढ़ रही है और साथ ही आज लोग जाने—अनजाने ये मान बैठे हैं कि उपभोग—भोग ही सुख है| इन्हीं सब कारणों के फलस्वरूप मानव प्राकृतिक एवं मानव निर्मित संसाधानों का बिना किसी रोक-टोक उपयोग करता जा रहा है| उसने उत्पादों के लिए खुद को समर्पित कर दिया है। इस सूक्ष्म बदलाव से मानव जीवन को बहुत नुकसान हो रहा है जो निम्नलिखित हैं—

(1) आज हम अपने खाने-पीने और पहनने के लिए उन सभी वस्तुओं का प्रयोग कर रहें हैं, जिनका विज्ञापन हर दिन टीवी पर देखते हैं। साथ ही उसी में अपना सुख देखने लगे हैं। हम बिना कुछ सोचे की इसे प्रयोग करेंगे अथवा नहीं हर वस्तु को खरीद लेते हैं|


(2) हम पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण कर रहे हैं। इससे जीवन से शांति गायब हो रही है और आक्रोश बढ़ रहा है।


(3) उपभोक्तावादी संस्कृति से समाज में दिखावा बढ़ गया है। लोग महंगी चीजें जरूरत के लिए नहीं बल्कि दिखावे के लिए खरीदते हैं।


(4) समाजिक सरोकार कम होते जा रहें हैं। नैतिक मापदंड तथा मर्यादाएँ कमज़ोर पड़ती जा रही हैं।


(6) स्वार्थ की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है।


(7) हम आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं। प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है।



Question 3.

लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?


Answer:

लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती इसलिए कहा है क्योंकि हमारी सांस्कृतिक अस्मिता खत्म होती जा रही है। पहले के लोग सादा जीवन—उच्च विचार का पलन करते थे। वे सामाजिकता तथा नैतिकता के पक्षधर थे। आज उपभोक्तावादी संस्कृति भारतीय संस्कृति की नींव हिला रही है। समाज में दिखावा बढ़ रहा है। विकास के उद्देश्यों को पीछे छोड़ झूठे लक्ष्यों का पीछा किया जा रहा है। स्वार्थ हावी हो रहा है। उपभोक्तावादी संस्कृति के बारे में गांधी जी ने कहा था कि अपनी बुनियाद पर कायम रहें। उपभोक्ता संस्कृति हमारी नींव हिला रही है और ये दुनिया, वर्तमान समाज और मानव के अस्तित्व पर एक बड़ा खतरा है|



Question 4.

आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहें हैं।

(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हों।


Answer:

(क) उत्पाद का उत्पादन हमारे सुविधा के लिए हुआ था। अब उत्पाद धीरे—धीरे हम पर हावी होते जा रहे हैं। इससे हमारा चरित्र बदल रहा है। मानव संसाधनों के उपभोग को ही चरम सुख मान बैठे हैं। मानसिकता के बदलाव के चलते दिखावा भी बढ़ गया है। छोटे—छोटे कामों के लिए भी भारी-भरकम एवं महंगे उत्पादों पर निर्भर रहने लगे हैं।

(ख) उपभोक्ता संस्कृति के प्रभाववश हम अंधानुकरण में कई ऐसी चीज़े अपना लेते हैं, जो अत्यंत हस्यास्पद हैं। जैसे- अमेरिका में लोग मृत्यु के बाद अंतिम क्रियाओं का प्रबंध कर लेते हैं। वे ज्य़ादा धन देकर हरी घास तथा संगीतमय फव्वारे की चाहत प्रकट कर देते हैं। भारतीय संस्कृति में ऐसे अंधानुकरण की हँसी उड़ना ही है। भारत में भी लोग इसी प्रकार के ढकोसलों जो कि पश्चिमीकरण से प्रभावित हैं के प्रभाव में आ रहे हैं साथ ही भारतीय समाज में पहले से अनेक हास्यास्पद प्रथाएँ हैं जो पहले से ही व्याप्त हैं|




Rachna Aur Abhivyakti
Question 1.

कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी-वी- पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं। क्यों?


Answer:

टीवी पर दिखाए जाने वाले उत्पादों के विज्ञापन बहुत ही लुभावने तरीके से बनाए जाते हैं। ऐड बनाने वाले विज्ञापन में ऐसे दृश्य दिखाते हैं जिसकी वजह से हम उसे खरीदने के लिए लालायित हो उठते हैं। इसकी और भी कई वजह हैं—

(1) टीवी पर दिखाए गए विज्ञापनों में वस्तुओं के गुणों का बखान बढ़ा-चढ़ाकर किया जाता है।


(2) विज्ञापन में फिल्म अभिनेता उन उत्पादों का इस्तेमाल करते दिखते हैं। उसे देख ऐसा लगता है कि इसके इस्तेमाल से हम भी अभिनेता जितने खूबसूरत हो जाएंगे।


(3) विज्ञापनों में वस्तुओं की तुलना दूसरे उत्पादों से कर उसे बेहतर बताया जाता है। उस उत्पाद को ऐसी समृद्ध जीवन-शैली के सााथ जोड़कर दिखाया जाता है कि हम उसी समृद्ध शैली में जीने की इच्छा करके विज्ञापित वस्तु खरीद लेते हैं।


(4) कभी छोटे बच्चे तो कभी घर में किसी प्रिय के दबाव में आकर भी हम वस्तुओं को खरीद लेते हैं।


(5) विज्ञापन वस्तुओं के साथ मुफ्त या छूट का लोभ हमें वह सामान खरीदने के लिए प्रेरित करता है।



Question 2.

आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन? तर्क देकर स्पष्ट करें।


Answer:

किसी भी वस्तु को खरीदने का आधार उसकी गुणवत्ता होनी चाहिए। विज्ञापन में वस्तु के गुणों का अतिशयोक्तिपूर्ण बखान किया जाता है उसके बारे में सच्चाई नहीं बताई जाती| उन्हीं गुणों को सुन हम किसी भी वस्तु को खरीद लेते हैं। आज कल विज्ञापन में वस्तु का बहुत ज्यादा महिमामंडन किया जाता है। वस्तु में जो गुण नहीं होते हैं उसे भी गिना दिया जाता है। जबकि वास्तविकता कुछ और ही होती है। विज्ञापन का असली मकसद सिर्फ उपभोक्ता की जेब पर डाका डालना रह गया है। विज्ञापन में मनमोहक भाषा और दृश्यों को दिखाया जाता है। विज्ञापन की चकाचौंध में उपभोक्ता फंस जाता है। इसलिए किसी भी वस्तु को खरीदने से पहले उसके गुण को अच्छी तरह जान लेना चाहिए।



Question 3.

पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति’पर विचार व्यक्त कीजिए।


Answer:

आज के उपभोक्तावादी युग ने समाज में दिखावे की संस्कृति को जन्म दिया है। बाजार में तरह—तरह की वस्तुएं भरी पड़ी हैं। जिनकी नुमाइश दुकान के बाहर लगाई जाती है। इस चमक—दमक को देख लोग उस वस्तु को खरीदने पर विवश हो जाते हैं। कई बार तो ऐसा भी होता है कि जरूरत ना होने पर भी लोग सामान खरीद लेते हैं। ऐसा दिखावे के वशीभूत होकर करते हैं। इतना ही नहीं दिखावे के चक्कर में महंगी वस्तु खरीदने से भी नहीं चूकते। जबकि वही काम कम दाम की वस्तु में भी हो सकता है। जैसे लोग 2 लाख तक की घड़ी खरीदकर पहनते हैं। जबकि समय तो पांच सौ रुपए की घड़ी भी बताती है। पांच सितारा होटल में खाना और महंगे कपड़े पहनना, ये सब दिखावे का हिस्सा है। दिखावे की इस प्रवृत्ति से मनुष्य में आक्रोश और तनाव बढ़ रहा है।



Question 4.

आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए?


Answer:

भारतीय समाज में तेजी से उपभोक्ता संस्कृति बढ़ रही है। इससे मनुष्य के मन ही नहीं हमारे रीति—रिवाज और त्यौहारों पर भी गहरा असर पड़ रहा है। उपभोक्तावाद से हमारे रीति—रिवाज और त्यौहारों में नकारात्मक बदलाव आए हैं जो निम्न प्रकार हैं—

रीति-रिवाज- पहले के समय में रीति—रिवाज में पूरा परिवार शामिल होता था। सभी साथ बैठ एक—दूसरे के संग खुशियां बांटते थे। इससे अपनापन बना रहता था। आज मनुष्य वस्तुओं में इतना लिप्त हो गया है कि उसे अपने परिवार से मिलने की भी फुर्सत नहीं रही है। बस मोबाइल उठाया और संदेश भेज दिया। किसी के पास आने-जाने का समय नहीं रह गया है।


त्यौहार- कुछ वक्त पहले तक भारतीय परिवारों में त्यौहार धूम—धाम से मनाया जाता था। आज त्योहार में उल्लास कम दिखावा ज्यादा रह गया है। त्योहार के नाम पर बाजार सज जाते हैं और लोग फिजूलखर्ची कर खूब सामन खरीद लेते हैं। दीपावली में तो सामान महंगे होने पर भी खूब बिक्री होती है। लोगों में ये होड़ मची रहती है कि हमारा घर सजावट के बाद सबसे अच्छा दिखे दूसरे का नहीं। पूजा की सामग्री में भी ऐसी चीजों का उपयोग होने लगा है जिनका इस्तेमाल पहले नहीं किया जाता है।




Bhasha Adhyayan
Question 1.

धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।

इस वाक्य में ‘बदल रहा है’ क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है- धीरे-धीरे। अतः यहाँ ‘धीरे-धीरे’ क्रियाविशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रियाविशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कब, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रियाविशेषण कहलाता है।

(क) ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रियाविशेषण से युक्त पाँच वाक्य पाठ में से छांटकर लिखिए।

(ख) धीरे-धीरे, जोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज़्यादा, यहाँ, उधर, बाहर- इन क्रियाविशेषण शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।

(ग) नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रियाविशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिए-

वक्य क्रियाविशेषण विशेषण

1- कल रात से निरंतर बारिश हो रही है।

2- पेड़ पर लगे पके आम देखकर बच्चों के मुंह में पानी आ गया।

3- रसोईघर से आती पुलाव की हल्की खुशबू से मुझे ज़ोरों की भूख लग आई।

4- उतना ही खाओ जितनी भूख है।

5- विलासिता की वस्तुओं से आजकल बाजार भरा पड़ा है।


Answer:

(क) 1. सामंती संस्कृति के तत्व भारत में पहले भी रहे हैं। (पहले- कालवाचक क्रियाविशेषण)


2. उत्पादन बढ़ाने पर चारों ओर ज़ोर दिया जा रहा है। (चारों ओर-स्थानवाचक क्रियाविशेषण)


3. कोई बात नहीं आप उसे ठीक तरह चला भी न सकें। (ठीक तरह- रीतिवाचक क्रियाविशेषण)


4. विलासिता की सामग्रियों से बाज़ार भरा पड़ा है, जो आपको लुभाने की जी तोड़ कोशिश में निरंतर लगी रहती है। (निरंतर- रीतिवाचाक क्रियाविशेषण)


5. हमारे सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही है|(परिमाणवाचक क्रिया विशेषण)


(ख) धीरे-धीरे— हवा धीरे—धीरे चल रही है।


ज़ोर से— रामू ने श्याम को जोर से थप्पड़ मार दिया।


लगातार— कल शाम से लगातार बारिश हो रही है।


हमेशा— इस शहर की सड़कों पर निकलते समय जेबकतरों से सावधान रहना चाहिए|


आजकल— आजकल समाज में उपभोक्तावाद बढ़ता जा रहा है।


कम— आज लोगों की आमदनी कम और जरूरतें बढ़ती जा रही हैं।


ज़्यादा— ज्यादा बोलना अच्छी बात नहीं होती है।


यहाँ— यहाँ कल भयंकर दुर्घटना हुई थी।


उधर— रात के समय बच्चों को इधर—उधर नहीं घूमना चाहिए।


बाहर— ऐसी सर्दी में बाहर जाना ठीक नहीं होगा।


(ग) 1- कल रात से निरंतर बारिश हो रही है।


निरंतर (रीतिवाचक क्रियाविशेषण) कल (कालवाचक क्रियाविशेषण)


2- पेड़ पर लगे पके आम देखकर बच्चों के मुंह में पानी आ गया।


पेड़ पर, मुँह में (स्थानवाचक क्रियाविशेषण)


3- रसोई से आती पुलाव की हल्की खुशबू से मुझे ज़ोरों की भूख लग आई।


रसोईघर से (स्थानवाचक क्रियाविशेषण) हल्की (रीतिवाचक क्रियाविशेषण)


4- उतना ही खाओ जितनी भूख है।


उतना, जितनी (परिमाणवाचक क्रियाविशेषण)


5- विलासिता की वस्तुओं से आजकल बाज़ार भरा पड़ा है।


आजकल (कालवाचक क्रियाविशेषण) विलासिता (रीतिवाचक क्रियाविशेषण)