कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन-मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है उसे लिखकर व्यक्त कीजिए।
कविता की पहली और दूसरी पंक्ति को पढ़ते हुए मेरे मन में बच्चों के लिए बहुत दया और करुणा का भाव आता है। अत्यधिक सर्दी में छोटे- छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं। सड़कें कोहरे से ढकी हुई है, कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा है। ऐसे में भी बच्चे काम पर जाने के लिए मजबूर हैं। ये कैसी विडंबना है कि इतने छोटे बच्चों को इतनी सर्दी में घर पर बैठकर पड़ना चाहिए, खेलना- कूदना चाहिए, लेकिन वे अपने परिवार का पेट भरने के लिए वे काम पर जा रहे हैं। ये देखकर व्यवस्था पर बहुत गुस्सा आता है कि वे बालश्रम को ख़त्म करने के लिए कोई भी प्रयास नहीं कर रहे हैं। ये समस्या कब ख़त्म होगी, इसके लिए किसी के पास कोई उत्तर नहीं हैं।
कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रूप में पूछा जाना चाहिए कि ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?’ कवि की दृष्टि में उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए?
कवि की दृष्टि में इसे प्रश्न के रूप में इसलिए पूछा जाना चाहिए क्योंकि बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं। अगर वे शिक्षित नहीं होंगे तो हमारा देश भी शिक्षित नहीं होगा। बच्चों की उन्नति से ही देश की भी उन्नति है। इस तरह से छोटे-छोटे बच्चों का काम पर जाना बिल्कुल भी उचित नहीं है। बच्चों की इस स्थिति के जिम्मेदार समाज और व्यवस्था के लोग हैं। जो ये सब देख तो रहे हैं लेकिन इन बच्चों के हालातों को सुधारने के लिए कुछ भी नहीं कर रहे| इसलिए बच्चों के इन हालातों को नजरअंदाज न करते हुए इसे प्रश्न के रूप में समाज और व्यवस्था के सामने रखा जाना चाहिए ताकि समाज इस बात को समझे और इस कुप्रथा को ख़त्म करने के लिए आगे आये|
सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चे वंचित क्यों हैं?
जो बच्चे बाल मजदूरी करते हैं, उनके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती है। इसलिए वे भी अपने माता-पिता के साथ काम पर जाते हैं जिससे उन्हें दो वक्त का खाना मिल सके। बच्चों को पढ़ने के लिए किताबें, खेलने के लिए खिलौने और दूसरी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए इन बच्चों के माता- पिता के पास धन नहीं होता है। ये निम्न वर्ग की श्रेणी में आये हुए ऐसे परिवार होते हैं जिनको गरीबी ने जकड़ा हुआ होता है और जिससे निकलने में ये सब असमर्थ होते है। इसलिए ये सारे बच्चे सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से जीवन भर वंचित रहते है।
दिन-प्रतिदिन के जीवन में हर कोई बच्चों को काम पर जाते देख रहा/रही है, फिर भी किसी को कुछ अटपटा नहीं लगता। इस उदासीनता के क्या कारण हो सकते हैं?
लोगों ने दुनिया की इस भाग-दौड़ में स्वयं को इतना व्यस्त कर लिया है कि उनके पास दूसरों के लिए समय ही नहीं है। लोग अक्सर छोटे-छोटे बच्चों को काम करते हुए देखते है लेकिन अपने व्यस्त जीवन में उलझे होने के कारण वे ये सब भूल जाते है। छोटे-छोटे बच्चों से काम कराकर कुछ लोग तो बहुत मुनाफा कमा रहे है इसलिए वे सब बाल मजदूरी को ख़त्म करने के बजाए इसे बढ़ावा देते है। लोग इतने स्वार्थी हो गए है कि वे अपनी परेशानियों को तो समझते है लेकिन दूसरों की परेशानियां और विवशता उनके लिए कोई महत्व नहीं रखती है फिर चाहे वो परेशानियां एक छोटे बच्चे की ही क्यों न हो।
आपने अपने शहर में बच्चों को कब-कब और कहाँ-कहाँ काम करते हुए देखा है?
मैंने अपने शहर में बच्चों को विभिन्न जगहों पर काम करते हुए देखा है जो निम्नलिखित है :
- ढाबे पर
- बड़े - बड़े होटलों में
- विभिन्न दुकानों पर
- समृद्ध वर्ग के घरों में
- बड़े-बड़े दफ्तरों में
- रेलवे-स्टेशन पर
- सड़कों पर
- बसों में
- कंस्ट्रक्शन साइट पर
बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान क्यों हैं?
बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के सामान इसलिए है क्योंकि जैसे हमारी धरती पर कोई आपत्ति आती है तो सब कुछ तितिर- बितिर हो जाता है। उसी तरह बच्चे हमारे राष्ट्र की प्रगति का एक अंग है। यदि बच्चे की उन्नति रोक दी जाए तो हमारे राष्ट्र की प्रगति पर अंधकार छा जायेगा। हमारा देश एक विकासशील देश है और इस देश में रहने वाले सारे बच्चे एक सामान है। चाहे वे निम्न वर्ग के हो या उच्च वर्ग के। सभी बच्चों को एक सामान समझना चाहिए और उनको वो सारी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए जिनके वो हक़दार हैं। ये सरकार के साथ- साथ हम सब का भी कर्तव्य है।
काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर अपने-आप को रखकर देखिए। आपको जो महसूस होता है उसे लिखिए।
यदि मैं काम पर जाते हुए बच्चों के स्थान पर अपने आप को रखूंगी तो मुझे बहुत बुरा लगेगा क्योंकि जब मुझे कोई बच्चा स्कूल जाते हुए दिखेगा तो मुझे लगेगा कि मैं भी स्कूल जाऊं जो मेरे लिए असंभव होगा और जब मैं किसी बच्चे को खिलौनों से खेलते हुए देखूँगी तो मुझे लगेगा कि मेरे पास भी खेलने के लिए खिलौने हों। इसी वजह से दूसरे बच्चों के सामने मुझे बहुत हीन महसूस होगा और मेरे मन में तरह - तरह के सवाल उठेंगे कि मेरी ऐसी हालत क्यों है? क्या मैं भी इन सभी सुख - सुविधाओं की हक़दार नहीं हूँ और इन प्रश्नो के उत्तर देने के लिए मेरे पास कोई नहीं होगा।
आपके विचार से बच्चों को काम पर क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए? उन्हें क्या करने के मौके मिलने चाहिए?
मेरे विचार से बच्चों को काम पर इसलिए नहीं भेजा जाना चाहिए क्योंकि अपने इन दयनीय हालातों को देखकर उनके मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है जो उनके आने वाले जीवन के लिए बिलकुल भी उचित नहीं है। छोटे से ही काम करने पर उनका शारीरिक विकास भी नहीं हो पता है और वो जीवन भर के लिए मजदूर बन जाते हैं। ऐसे में उनके मानसिक और शारीरिक विकास के लिए उन्हें अच्छा वातावरण मिलना चाहिए। इसके लिए उन्हें स्कूल भेजना चाहिए और स्कूल में होने वाली खेल-कूद की प्रतियोगताओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए।