बाढ़ की खबर सुनकर लोग किस तरह की तैयारी करने लगे?
पटना शहर में जब लोगों ने बाढ़ आने की खबर सुनी तो वे अपनी जरूरत के हिसाब का समान जैसे ईंधन, आलू, मोमबत्ती, दियासलाई, पीने के लिए पानी और कम्पोज़ की गोलियां एकत्रित करने लगें जिससे कुछ दिन तक उनका गुजारा चल सके। वहीं दुकानों से भी समान हटाए जाने लगे और कुछ लोग सामान ऊपर रखने लगें जिससे बाढ़ से उन्हें या उनके सामान को किसी तरह की हानि ना पहुंचे।
बाढ़ की सही जानकारी लेने और बाढ़ का रूप देखने के लिए लेखक क्यों उत्सुक था?
हालांकि लेखक बाढ़ जैसे विषय पर लिख चुके थे लेकिन उन्होंने कभी इसे स्वयं भोगा नहीं था। उनके लिए ये बिलकुल नया अनुभव था। हर आम आदमी की तरह उनके मन में भी ये जानने की जिज्ञासा थी कि बाढ़ आने पर लोग क्या करते हैं या ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए। इसके अलावा किसी नगर में विशेषकर अपने नगर में पानी किस तरह घुसेगा, यह जानना उनके लिए बिलकुल नया अनुभव था। उन्हें घुसते हुए पानी को देखना और उसे अनुभव करने की बहुत उत्सुकता थी।
सबकी जबान पर एक ही जिज्ञासा-‘पानी कहाँ तक आ गया है?’ इस कथन से जनसमूह की कौन-सी भावनाएँ व्यक्त होती हैं?
सबके मन में ये जानने की जिज्ञासा थी कि पानी कहां तक पहुंचा है। पानी कहां तक आ गया है? इन शब्दों से हमें लोगों की उत्सुकता का और उनकी असुरक्षा की भावना का पता चलता है। असुरक्षा की भावना का इसलिए क्योंकि हर कोई इस बात को लेकर चिंतित था कि पानी का स्तर कहां तक पहुंचा है। कहीं पानी उनके घर तक ना पहुंच जाए।
‘मृत्यु का तरल दूत’ किसे कहा गया है और क्यों?
बाढ़ का पानी लगातार बढ़ता जा रहा था और आगे बढ़ते हुए बाढ़ कके जल के सामने सब लाचार थे| बाढ़ के जल के रास्ते में आने वाली प्रत्येक बस्तु नष्ट होती जा रही थी| बढ़ते हुए जल ने अपनी भयानकता का संकेत दे दिया था। इस जल ने ना जाने कितने प्राणियों की जान ले ली थी और ना जाने कितनों का घर उजाड़ दिया था। बाढ़ के पानी की वजह से कई लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी जिस कारण इसे मृत्यु का तरल दूत कहा गया।
आपदाओं से निपटने के लिए अपनी तरप़्ाफ़ से कुछ सुझाव दीजिए।
प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए निम्न प्रयास किये जा सकते हैं-
क. प्राकृतिक आपदाएं बताकर नहीं आतीं। इसलिए सरकार और प्रशासन को पहले से ही सभी प्रकार की आपदाओं से निपटने के इंतजाम करने चाहिए।
ख. लोगों को अचानक कोई आपदा आने पर एकदम से घबराना नहीं चाहिए बल्कि उन्हें धैर्य से काम लेना चाहिए।
ग. आपदाओं से निपटने के लिए लोगों को पहले से ही संबंधित उपकरणों को अपने घर या दुकानों पर रखना चाहिए जिससे जरूरत पड़ने पर उन्हें किसी से मांगना ना पड़े बल्कि उससे अपनी और दूसरों की मदद करनी चाहिए।
घ. आपदाओं से निपटने का सभी को प्रशिक्षण मिलना चाहिए। खासकर से जब आप किसी पहाड़ी या समुद्री इलाके के पास रहते हो।
च. आपदा के समय नौजवानों को बड़े-बूढ़ों और बच्चों की मदद करनी चाहिए।
‘ईह! जब दानापुर डूब रहा था तो पटनियाँ बाबू लोग उलटकर देखने भी नहीं गए……..अब बूझो!’-इस कथन द्वारा लोगों की किस मानसिकता पर चोट की गई है?
उपर्युक्त कथन से लोगों में क्षेत्रीयता की भावनाएं, स्वाभाविक कठोरता और पारस्परिक द्वेष की भावना व्यक्त होती हैं। इस कथन से साफ पता चलता है कि उस व्यक्ति के मन को काफी गहरी चोट पहुंची होगी। ये दुख उसके और एक दुखी ग्रामीण के मन की स्वाभाविक प्रतिक्रिया को भी दर्शाता है। उसके बोले गए कथन से पता चलता है कि लोग संकट की घड़ी में एक-दूसरे की सहायता करने की बजाय स्वार्थी हो जाते हैं। जबकि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए| उन्हें अपने स्वार्थ से परे एक दूसरे की मदद करनी चाहिए ताकि भविष्य में उन पर आने वाली प्राकृतिक आपदा के समय दूसरे भी उनकी मदद के लिए आगे आएं| लेकिन वहाँ ऐसा नहीं होता वे लोग अपनी सुख और सुविधाओं को छोड़कर किसी संकटग्रस्त व्यक्ति का हाल-चाल पूछने या उसकी मदद करने का कष्ट तक नहीं करते।
खरीद-बिक्री बंद हो चुकने पर भी पान की बिक्री अचानक क्यों बढ़ गई थी?
बाढ़ के पानी के बढ़ते हुए स्तर को देखने के लिए लोगों में उत्सुकता थी। बाढ़ की वजह से बाकी दुकानें बंद हो गई थीं। बस पान की ही दुकान खुली थी है। साथ ही ऐसे में लोग भी खाली होते हैं और इकट्ठा होने के लिए किसी पान के खोखे जैसी जगह ही ढूंढते है। इस वजह से बाढ़ के दौर में अन्य सामानों की खरीद-बिक्री बंद हो जाने के बाद भी पान की बिक्री बढ़ गई।
जब लेखक को यह अहसास हुआ कि उसके इलाके में भी पानी घुसने की संभावना है तो उसने क्या-क्या प्रबंध किए?
जब लेखक को अहसास हुआ कि बाढ़ का पानी उनके इलाके में भी घुसने वाला है तो वे भी सभी की तरह जरूरत की चीजें जुटाने में लग गए। उन्होंने आवश्यक ईंधन, मोमबत्ती, दियासलाई, पीने का पानी, कम्पोज़ की गोलियां और खाने के लिए कुछ आलू जमा कर लिए जिससे बाढ़ से घिर जाने पर कुछ दिनों तक उनके जीवन का गुजारा चल सके। वे लेखक हैं तो निश्चित तौर पर उन्हें पढ़ने-लिखने का शौक है और बाढ़ की वजह से वो कहीं बाहर तो जा नहीं सकते थे इसलिए अपने खाली समय में पढ़ने के लिए उन्होंने कुछ किताबें भी खरीद लीं। अतः बाढ़ से बचने के लिए उन्होंने सभी व्यवस्थाएँ कर ली थीं|
बाढ़ पीड़ित क्षेत्र में कौन-कौन सी बीमारियों के फैलने की आशंका रहती है?
बाढ़ के पानी में मच्छर अधिक पनपते हैं जिस कारण वहां रहने वाले लोगों को हैजा, मलेरिया, टायफाइड, उल्टी-दस्त, पेचिश, बुखार, डायरिया और कालरा आदि बीमारियां होने की संभावना ज्यादा रहती है। इसके अलावा कई बार लोगों के पैर में पकने वाले घाव भी हो जाते हैं क्योंकि उनका बार-बार पानी में पैर लगता रहता है।
नौजवान के पानी में उतरते ही कुत्ता भी पानी में कूद गया। दोनों ने किन भावनाओं के वशीभूत होकर ऐसा किया?
नौजवान के पानी में उतरते ही कुत्ता भी पानी कूद गया। इससे दोनों में लगाव की भावना का पता चलता है। जब गांव के बीमार लोगों को नाव में बैठाकर कैंप ले जाना था तो वहां एक डॉक्टर बोला, आ रे! कुकुर नहीं, कुकुर नहीं, इसको भगाओ। ऐसे में कुत्ते के मालिक ने भी साफ कह दिया की अगर वो नहीं जाएगा तो हम भी नहीं जाएंगे। इसके बाद कुत्ते ने भी पानी में छलांग दी। इस वाकया से पता चलता है कि वे दोनों बहुत ही अच्छे मित्र थे और दोनों के बीच बेहद लगाव था।
‘अच्छा है, कुछ भी नहीं। कलम थी वह भी चोरी चली गई। अच्छा है, कुछ भी नहीं-मेरे पास।’-मूवी कैमरा टेप रिकॉर्डर आदि की तीव्र उत्कंठा होते हुए भी लेखक ने अंत में उपर्युक्त कथन क्यों कहा?
एक कलाकार होने के कारण लेखक को महसूस हुआ की उन्हें बाढ़ को अपने कैमरे में कैद करना चाहिए। लेकिन उसी समय उन्हें इस बात का भी आभास हो गया कि अगर वे ऐसा करते हैं तो सिर्फ एक दर्शक बनकर रहे जाएंगे। फिर वो बाढ़ का उस तरह से अनुभव नहीं कर पाएंगे जैसे कर रहे थे। साथ ही शायद उन्हें लोगों का दर्द, चीखें आदि रिकॉर्ड करने के बाद देखना अच्छा ना लगता हो और अपने इस भयावह अनुभव को वो आगे कभी उजागर नहीं करना चाहते। उनकी कलम भी चोरी हो गई थी जिसका शुरू में शायद उन्हें बुरा लगा हो लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि अच्छा ही है कि मेरे पास कुछ नहीं है।
आपने भी देखा होगा कि मीडिया द्वारा प्रस्तुत की गई घटनाएँ कई बार समस्याएँ बन जाती हैं, ऐसी किसी घटना का उल्लेख कीजिए।
कई ऐसी समस्याएं होती हैं जिन्हें टीआरपी की वजह से मीडिया खूब बढ़ा-चढ़ा कर दिखाती है। ऐसी ही एक घटना है बाबरी मस्जिद की जो सन् 1992 में उजागर हुई थी लेकिन आज भी थमने का नाम नहीं ले रही है। इस घटना को मीडिया ने इतना बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया कि पूरा देश सांप्रदायिक दंगों की चपेट में आ गया। आज भी राजनेता वोट मांगने के लिए इस मुद्दे का इस्तेमाल करते हैं और मीडिया भी टीआरपी पाने के लिए इसे बेझिजक प्रसारित करती है।
अपनी देखी-सुनी किसी आपदा का वर्णन कीजिए।
मुंबई में बारिश आम बात है लेकिन जुलाई 2005 की बारिश को कोई नहीं भूल सकता। उस साल पूरा मुंबई शहर बाढ़ की चपेट में आ गया था। करीब एक बजे के आस-पास वर्षा ने अपना जो प्रलयंकारी रूप दिखाया वह करीब हफ्ते भर चला। लोग दफ्तरों, दुकानों आदि में फंसे रहें। यहां तक कि बच्चों को भी बिना बिजली के स्कूलों में पूरी रात काटनी पड़ी। इस त्रासदी में ना जाने कितनों को अपनी जान गंवानी पड़ी। देश की आर्थिक राजधानी को बहुत ज्यादा आर्थिक एवं जानमाल का नुकसान सहना पड़ा।