बालक श्रीकृष्ण किस लोभ के कारण दूध पीने के लिए तैयार हुए?
श्रीकृष्ण दूध पीने में नखरे दिखाते हैं। तब मां यशोदा उन्हें ये कहकर बहलाती हैं कि अगर वो रोज दूध पिएंगे तो उनकी चोटी बलराम की तरह लंबी और मोटी हो जाएगी। उसे रोज नहलाया जाएगा और गूंथा जाएगा। जिससे चोटी किसी नागिन की तरह जमीन पर लोटने लगेगी। कृष्ण ये बात सुनकर खुश हो जाते हैं और इस लोभ के चलते श्रीकृष्ण कच्चा दूध पीने के लिए तैयार हो जाते हैं।
श्रीकृष्ण अपनी चोटी के विषय मे क्या-क्या सोच रहे थे?
श्री कृष्ण को दूध पिलाने के लिए मां यशोदा ने कहा था कि अगर वो दूध पिएंगे तो उनकी चोटी लंबी और मोटी हो जाएगी। इसके बाद मां यशोदा हर रोज उन्हें मक्खन और रोटी देने की बजाय कच्चा दूध पिला रही हैं। तब कृष्ण सोचते हैं कि दूध तो वे कई दिनों से पी रहे हैं फिर भी उनकी चोटी छोटी ही है। जबकि मां ने तो कहा था रोज दूध पीने से चोटी इतनी लंबी हो जाएगी कि वो नागिन की तरह जमीन पर लोटने लगेगी।
दूध की तुलना में श्री कृष्ण कौन से खाद्य पदार्थ को अधिक पसंद करते थे?
सूरदास ने श्रीकृष्ण को पसंद एवं नापसंद आने वाले खाद्य पदार्थों का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है। श्रीकृष्ण को दूध की तुलना में मक्खन और रोटी खाना ज्यादा पसंद है। लेकिन मां यशोदा को श्रीकृष्ण के स्वास्थ्य की चिंता है। इसलिए वो हर रोज उन्हें कच्चा दूध पिलाना चाहती हैं। श्रीकृष्ण दूध नहीं पीते तो मां यशोदा उन्हें एक प्रलोभन देती हैं। वो कहती हैं कि रोज दूध पीने से उनकी चोटी बलराम की तरह लंबी और मोटी हो जाएगी।
‘तैं ही पूत अनोखौ जायौ’- पंक्ति में ग्वालिन के मन के कौन से भाव मुखरित हो रहे हैं?
इस वाक्य में ग्वालिन मां यशोदा के पास श्रीकृष्ण की शिकायत लेकर पहुंची हैं। वो मां यशोदा से कहती हैं कि कृष्ण ने उनका सारा माखन चुराकर खा लिया है। तब गोपियों के मन में विभिन्न भाव उत्पन्न होते हैं। ग्वालिन सोचती हैं कि यशोदा ने शायद अनोखे पुत्र को जन्म दिया है, जो शरारतें करने से बाज नहीं आता। वह मक्खन, दूध-दही आदि जमीन पर फैला देता है। अपनी शरारतों में वह अपने साथियों को भी शामिल कर लेता है।
मक्खन चुराते और खाते समय श्रीकृष्ण थोड़ा-सा मक्खन बिखरा क्यों देते हैं?
श्रीकृष्ण को मक्खन बहुत पसंद है। उन्हें घर में मक्खन नहीं मिलता था तो वो अपने साथियों के साथ पड़ोसियों के घरों में जाकर माखन चुराते थे। कृष्ण बहुत छोटे थे। जब वो ओखल पर चढ़कर मटकी से माखन निकाल खाते थे तो थोड़ा माखन नीचे भी गिर जाता था। वो ऐसा जानबूझकर नहीं करते थे। मक्खन चुराने की जल्दबाजी और साथियों को मक्खन देने की जल्दबाजी में ऐसा होता था।
दोनों पदों में से आपको कौन-सा पद अधिक अच्छा लगा और क्यों?
सूरदास ने इन दोनों पदों में कृष्ण की नटखट लीलाओं का वर्णन किया है। दोनों ही पद बेहद खूबसूरती से लिखे गए हैं। इन दोनों में से कृष्ण और मां यशोदा की बातों वाला पद ज्यादा अच्छा लगा। इसमें मां यशोदा, कृष्ण से कहती हैं कि अगर वो रोज दूध पिएंगे तो उनकी चोटी बलराम की तरह लंबी और मोटी हो जाएगी। उसे रोज नहलाया जाएगा और गूंथा जाएगा। जिससे चोटी किसी नागिन की तरह जमीन पर लोटने लगेगी। कृष्ण ये बात सुनकर खुश हो जाते हैं और इस लोभ के चलते श्रीकृष्ण कच्चा दूध पीने के लिए तैयार हो जाते हैं।
दूसरे पद को पढ़कर बताइए कि आपके अनुसार उस समय श्रीकृष्ण की उम्र क्या रही होगी?
पद में गोपियां श्रीकृष्ण की शिकायत लेकर मां यशोदा के पास जाती हैं। वो उन्हें बताती हैं कि कृष्ण ने उनका सारा मक्खन, दही और दूध खा लिया है। साथ ही बहुत सारा गिरा भी दिया है। वो अपने मित्रों को भी साथ लाता है। सब मिलकर बहुत नुकसान करते हैं। कृष्ण ओखल पर चढ़कर मटकी से मक्खन निकाल लेते हैं। अपने साथियों को देने की जल्दी में गिरा भी देते हैं। कृष्ण की इन लीलाओं से लगता है कि उनकी उम्र उस समय 5 से 10 वर्ष रही होगी।
ऐसा हुआ हो कभी कि माँ के मना करने पर भी घर में उपलब्ध किसी स्वादिष्ट वस्तु को आपने चुपके-चुपके थोड़ा बहुत खा लिया हो और चोरी पकड़े जाने पर कोई बहाना भी बनाया हो। अपनी आपबीती की तुलना श्रीकृष्ण की बाल-लीला से कीजिए।
हमेशा से मेरी पसंदीदा मिठाई गुलाब जामुन रही है। जब भी घर में गुलाब जामुन आते हैं तो मां मुझे सबसे पहले और सबसे ज्यादा देती है। एक दिन मेरे छोटे भाई का जन्मदिन था। तब मां ने घर पर 200 गुलाब जामुन बनाए थे। हमारे घर में करीब 50 मेहमान आए होंगे। सबने जी भर के गुलाब जामुन खाया और फिर भी बहुत सारे बच गए। मां मुझे हर रोज दो गुलाब जामुन देती थी। लेकिन उतने से मेरा मन नहीं भरता था। मैं चुपके से दो और गुलाब जामुन निकालकर खा जाया करता था। धीरे धीरे मैंने दो के चार गुलाब जामुन कर दिया। जब वो जल्द ही खत्म होने लगे तब मेरी मां को शक हो गया कि मैंने ही वो सारे गुलाब जामुन खाए हैं। तब मेरी मां ने मुझसे डांटते हुए पूछा। मां की डांट सुन मैंने भी गुलाब जामुन खाने की बात कबूल ली। श्रीकृष्ण की तरह खाने को लेकर मुझे भी डांट सुननी पड़ी। अब मैं मां की बात मानता हूं और चोरी करके कभी नहीं खाता।
किसी ऐसी घटना के विषय में लिखिए जब किसी ने आपकी शिकायत की हो और फिर आपके किसी अभिभावक (माता-पिता, बड़ा, भाई-बहिन इत्यादि) ने आपसे उत्तर माँगा हो।
मेरे पापा हमेशा मुझे ज्यादा टीवी देखने के लिए डांटते रहते हैं। उनका कहना है कि होमवर्क पूरा करने के बाद ही कुछ देर टीवी देखो। जबकि मैं मेरा फेवरेट कार्टून शो कभी मिस नहीं करता। फिर चाहे होमवर्क पूरा हुआ हो या ना हुआ हो। एक दिन कार्टून शो के समय पापा घर पर थे। मैंने पापा से झूठ बोल दिया कि मैं पड़ोस में रह रहे दोस्त के घर पर पढ़ने जा रहा हूं। वहां पहुंचकर मैंने अपना कार्टून शो देख लिया। दोस्त की मम्मी ने मेरी शिकायत पापा से कर दी। फिर क्या था पापा ने मुझे झूठ बोलने और टीवी देखने, दोनों बातों को लेकर खूब डांटा। साथ ही वादा भी करवाया कि मैं आज के बाद कभी झूठ ना बोलूं। पापा की बात मुझे माननी पड़ी। अब मैंने झूठ बोलना बंद कर दिया है और अब मैं कार्टून शो भी नहीं देखता।
श्रीकृष्ण गोपियों का माखन चुरा-चुराकर खाते थे इसलिए उन्हें ‘माखन-चुरानेवाला’ भी कहा गया है। इसके लिए एक शब्द दीजिए।
माखनचोर
श्रीकृष्ण के लिए पाँच पर्यायावाची शब्द लिखिए।
श्रीकृष्ण के लिए पाँच पर्यायावाची शब्द हैं-
गोपीवल्लभ,
मुरारि,
वासुदेव,
गोपीनाथ,
कन्हैया,
माधव।
कुछ शब्द परस्पर मिलते-जुलते अर्थवाले होते हैं, उन्हें पर्यायवाची कहते हैं और कुछ विपरीत अर्थवाले भी। समानार्थी शब्द पर्यायवाची कहे जाते हैं और विपरीतार्थक शब्द विलोम, जैसे-
पर्यायवाची –
चंद्रमा- शशि, इंदु, राका।
मधुकर- भ्रमर, भौंरा, मधुप।
सूर्य- रवि, भानु, दिनकर।
विपरीतार्थक-
दिन- रात
श्वेत - श्याम
शीत- उष्ण
पाठ से दोनों प्रकार के शब्दों को खोजकर लिखिए।
‘सूरदास के पद’ पाठ से दोनों प्रकार के कुछ शब्द नीचे दिए जा रहे हैं:
पर्यायवाची शब्द -
दूध- पय, क्षीर, दुग्ध, पीयूष।
पूत- पुत्र, सुत, तनय, आत्मज।
घर- गेह, आलय, निकेतन।
मैया- माता, जननी, माँ, जन्मदात्री।
हरि- प्रभु, परमात्मा, ईश्वर, नारायण।
दिवस- वार, दिन, दिवा।
भुइँ- पृथ्वी, भू, भूमि, जमीन, वसुधा, अवनि।
सखा- मित्र, मीत, सहचर, दोस्त।
अनोखा- अद्भुत, विचित्र, अद्वितीय, अपूर्व, निराला, अनूठा।
सूना- निर्जन, सुनसान।
विलोम शब्द-
मोहिं- तोहिं
लाँबी- छोटी
मोटी- पतली
भुईँ- आसमान
काँचौ- पक्का
चिरजीवौ- क्षणभंगुर
दिवस- रात्रि
खोलि- बंदकर
अनभावत- अतिभावत
हानि- लाभ
अनोखौ- साधारण