क्या चिट्ठियों की जगह कभी फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ले सकते हैं?
बदलते समय के साथ-साथ संचार के पुराने माध्यमों की जगह अत्य़ाधुनिक तकनीकों ने ले ली है, लेकिन चिट्ठी का अस्तित्व आज भी बरकरार है। इस बात में कोई संशय नहीं कि ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल से हमारे काम आसान हो गए है। जहां पहले अपनी बात को पत्र के जरिए पहुंचाने में हफ्ते लग जाते थे, वहीं अब मिनटों में आप विदेश में बैठे अपने करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों से बातचीत कर सकते हैं। इसी के चलते पत्रों की संख्या में बहुत कमी भी आई है, लेकिन पत्र से जो आत्मीयता, प्रेम तथा लगाव मिल जाता है वह संचार के इन दूसरे साधनों से कभी नहीं मिल सकता। इसलिए चिट्ठियों की जगह कभी कोई नहीं ले सकता।
पत्र जैसा संतोष फोन या एस.एम.एस. का संदेश क्यों नहीं दे सकता?
पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश इसलिए नहीं दे सकता क्योंकी फोन में हम अपनी रोजमर्रा की बातों को ज्यादा महत्व देते हैं। वहीं, पत्र में हमें अपने मन के भावों को अच्छे से व्यक्त करने की स्वतंत्रता होती है। पत्र में व्यक्ति का प्रेम और गहरा लगाव समाया होता है। इसके साथ ही पत्र को हम भविष्य के लिए संजोकर भी रख सकते हैं। कई लोग पत्रों को इकट्ठा कर उनकी किताब बनाकर तैयार करते हैं। पत्र पाने वाले को किसी तरह के साधन की जरूरत नहीं होती, लेकिन एसएमएस पाने के लिए फोन होना जरूरी होता है।
पत्र को खत, कागद, उत्तरम, जाबू, लेख, कडिद, पाती, चिट्ठी इत्यादि कहा जाता है। इन शब्दों से संबंधित भाषाओं के नाम बताइए।
पत्र के अलग-अलग भाषाओं में कई निम्नलिखित नाम हैं।
पत्र-लेखन की कला के विकास के लिए क्या-क्या प्रयास हुए? लिखिए।
पत्र-लेखन की कला को विकसित करने के लिए स्कूलों के पाठ्यक्रमों में पत्र लेखन को शामिल किया गया है| जिससे बच्चे पढ़ाई के बहाने पत्र लिखना सीख जाएं। विश्व डाक संघ ने भारत में ही नहीं दूसरे देशों में भी पत्र लेखन को बढ़ावा दिया और लोगों में पत्र लेखन के प्रति जागरूकता लाने के लिए अनेक अभियान भी चलाए हैं| इसके लिए विश्व डाक संघ ने 1972 में 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए पत्र लेखन प्रतियोगिता भी शुरू की, जिससे बच्चे इसमें बढ़चढकर हिस्सा लें। पत्रों के अस्तित्व को जिंदा रखने के लिए ऐसी तमाम तरह की प्रतियोगिताएं आज भी समय-समय पर कराई जाती हैं।
पत्र धरोहर हो सकते हैं, लेकिन एस.एम.एस. क्यों नहीं? तर्क सहित अपना विचार लिखिए।
पत्र ऐतिहासिक धरोहर हो सकते हैं इसके पीछे कई विभन्न प्रकार के तर्क दिए जा सकते हैं। हाथ से लिखे पत्र को आप भविष्य के लिए संभालकर रख सकते हैं, लेकिन एसएमएस के रूप में मिले संदेशों को आप कितना और कहां तक संभालकर रख सकते हैं। आज भी देश की कई महान राजनीतिक हस्तियों के पत्र संग्राहलयों में संभालकर रखे जाते हैं। इतना ही नहीं कई लोगों ने तो राजनेताओं द्वारा पत्र में मिले जवाबों को आज भी फ्रेम करा के रखा हुआ है। एस.एम.एस. के संदेश छोटे और बंटे हुए होते हैं साथ ही उनका लिखना का तरीका भी व्यवस्थित एवं पत्र की तरह नहीं होता| इसलिए इन्हें भविष्य के लिए संभालकर रखना काफी मुश्किल है।
किसी के लिए बिना टिकट सादे लिफ़ाफ़े पर सही पता लिखकर पत्र बैरंग भेजने पर कौन-सी कठिनाई आ सकती है? पता कीजिए।
चिट्ठी को बिना टिकट के भेजने से तमाम तरह मुश्किलें आ सकती हैं।
(क) शायद आपका पत्र स्थानीय पते पर पहुंचे ही ना।
(ख) चिट्ठी प्राप्त करने वालो को टिकट का दोगुना दाम देना पड़ सकता है।
(ग) पैसे न होने की वजह से प्राप्तकर्ता को वो पत्र मिल ही न पाए।
(घ) डाकघर से पत्र स्थानीय पते की बजाये भेजने वाले के पते पर ही वापस लौट आए।
ऐसा क्यों होता था कि महात्मा गाँधी को दुनियाभर से पत्र ‘महात्मा गाँधी-इंडिया’ पता लिखकर आते थे?
महात्मा गांधी भारत के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं। भारत में उन्हें राष्ट्रपिता के नाम से जाना जाता है। महात्मा गांधी के पास न सिर्फ देश बल्कि दूर-दराज विदेशों से भी कई पत्र आते थे। लेकिन राजनीतिक संगोष्ठियों का नेतृत्व और कई अहम यात्राओं में शामिल होने की वजह से उनका सही पता किसी को मालूम नहीं रहता था। लोगों में लोकतंत्र की समझ पैदा करने के उद्देश्य से वह एक स्थान से दूसरे स्थान कब निकल जाते थे, ये किसी को पता नहीं चलता था। इसलिए जिन लोगों को महात्मा गांधी तक अपना संदेश पत्रों के माध्यम से भेजना होता था, वो उस पर 'महात्मा गांधी इंडिया' लिख दिया करते थे।
पिन कोड भी संख्याओं में लिखा गया एक पता है, कैसे?
पिन कोड का पूरा नाम ‘पोस्टल इन्डेक्स नंबर’ होता है। यह छह अंकों का होता है और इसके हर अंक का कुछ मतलब होता है। जैसे पहला अंक राज्य को बताता है, दूसरा और तीसरा अंक उपक्षेत्र को बताता है, वहीं आखिर के तीन अंक डाकघर के होते हैं। इसे हम यह भी कह सकते है कि यह संख्याओं के रूप में लिखा एक पता होता है, लेकिन यह किसी व्यक्ति विशेष के मकान का संकेत नहीं देता। यह पिनकोड देखकर डाकघर के कर्मचारी आसानी से पता लगा लेते हैं कि संबंधित चिट्ठी किस राज्य या शहर भेजनी है।
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘भगवान के डाकिये’ आपकी पाठ्यपुस्तक में है। उसके आधार पर पक्षी और बादल को डाकिये की भाँति मानकर अपनी कल्पना से लेख लिखिए।
इंसान ने निश्चित ही अपनी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक दूसरे से संपर्क साधने के लिए पत्र भेजने का सिलसिला शुरू किया होगा। पत्र भेजने के लिए उन्होंने शुरू में कबूतरों को डाकिए के तौर पर इस्तेमाल किया। आज इसकी पकड़ मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया तक पहुंच गई है। हालांकि संचार के माध्यमों का इतना विकास होने के बावजूद पत्रों ने अपना अस्तित्व नहीं खोया है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग आज भी पत्र के माध्यम से अपने करीबी रिश्तेदारों और दोस्तों से जुड़े रहते हैं। इसके अलावा सरकारी विभागों में कई महत्वपूर्ण संदेश आज भी पत्रों के माध्यम भेजे जाते हैं। जैस डाकिये को देवदूत के रूप में देखा जाता है, ठीक उसी तरह बादलों और पक्षियों को भगवान का डाकिया माना जाता है। ये डाकिए मनुष्य के लिए ईश्वर का संदेश लेकर आते हैं। इनके संदेशों को भले ही हम न पढ़ सकें, लेकिन उसमें प्रेम और एकता का संदेश छिपा होता है। ये डाकिए किसी के साथ भेदभाव किए बिना समान रूप से सबको लाभ देने का संदेश इंसानों तक पहुंचाने का काम करते हैं।
केवल पढ़ने के लिए दी गई रामदरश मिश्र की कविता ‘चिट्ठियाँ’ को ध्यानपूर्वक पढि़ए और विचार कीजिए कि क्या वह कविता केवल लेटर-बॉक्स में पड़ी निर्धारित पते पर जाने के लिए तैयार चिट्ठियों के बारे में है? या रेल के डिब्बे में बैठी सवारी भी उन्हीं चिट्ठियों की तरह हैं जिनके पास उनके गंतव्य तक का टिकट है। पत्र के पते की तरह क्या विद्यालय भी एक लेटर-बॉक्स की भाँति नहीं है जहाँ से उत्तीर्ण होकर विद्यार्थी अनेक क्षेत्रें में चले जाते हैं? अपनी कल्पना को पंख लगाइए और मुक्त मन से इस विषय में विचार-विमर्श कीजिए।
इस विषय विद्यार्थी स्वयं विचार-विमर्श करें।
संस्कृत साहित्य के महाकवि कालिदास ने बादल को संदेशवाहक बनाकर ‘मेघदूत’ नाम का काव्य लिखा है। ‘मेघदूत’ के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
‘मेघदूत’ दुनिया के सबसे लोकप्रिय कवि एवं नाटककार कालिदास की रचना है। यह काव्य संस्कृत भाषा में लिखी गई है।
कालिदास की यह रचना अलकापुरी नरेश कुबेर और उसके सेवक पर आधारित है। कुबेर के दरबार में कई सेवक रहते थे। सभी सेवक दिन रात कुबेर की सेवा में हाजिर रहते थे। उन्हीं में से एक सेवक ऐसा भी था जिसका नया-नया विवाह हुआ था। अपनी पत्नी के साथ सेवक काफी खुश रहता था। लेकिन पत्नी के साथ ज्यादा समय बिताने की वजह से कुबेर की सेवा पहले की तरह नहीं कर पा रहा था। इस वजह से एक दिन कुबेर क्रोधित हो गए और उन्होंने सेवक को अपनी पत्नी से दूर रहने का श्राप दे दिया। सेवक अब अपनी नवविवाहिता पत्नी से अलग रामगिरि पर्वत पर रहने लगा। रामगिरी पर्वत पर वह अपनी पत्नी को बहुत याद किया करता था। वर्षा ऋतु आई तो वह आकाश में डोलते काले बादलों को देखकर अपनी पत्नी को याद करने लगा। वह इन्हीं काले बादलों अर्थात मेघ को दूत बनाकर अपनी पत्नी के पास गया। इस दौरान उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कुबेर से सेवक की यह दशा देखी नहीं गई और उसने सेवक को श्रापमुक्त कर दिया। इसके बाद सेवक खुशी-खुशी अपनी पत्नी के साथ अलकापुरी आ गया। इसी कथा का ‘मेघदूत’ नामक काव्य में सुंदर वर्णन है।
पक्षी को संदेशवाहक बनाकर अनेक कविताएँ एवं गीत लिखे गए हैं। एक गीत हैं।- ‘जा-जा रे कागा विदेशवा, मेरे पिया से कहियो संदेशवा’। इस तरह के तीन गीतों का संग्रह कीजिए। प्रशिक्षित पक्षी के गले में पत्र बाँधकर निर्धारित स्थान तक पत्र भेजने का उल्लेख मिलता है। मान लीजिए आपको एक पक्षी को संदेशवाहक बनाकर पत्र भेजना हो तो आप वह पत्र किसे भेजना चाहेगें और उसमें क्या लिखना चाहेंगे।
प्रश्न के आधार पर तीन गीतों का संग्रहः
1- संदेशे आते हैं, हमें तड़पाते हैं, तो चिट्ठी आती है, वो पूछे जाती है, के घर कब आओगे, के घर कब आओगे, लिखो कब आओगे, के तुम बिन ये घर सूना सूना है
2- पहले प्यार की पहली चिट्ठी साजन को दे आ, कबूतर जा, जा, जा!।
3- उड़ जा काले कांवा, तेरे मुंह विच खंड पांवा।
यदि मुझे किसी पक्षी को संदेशवाहक बनाकर पत्र भेजना पड़े तो मैं यह पत्र अपने दादा जी को भेजना चाहूंगा, जो अब हमारे साथ नहीं है। इस पत्र में मैं लिखूँगा कि मैं उन्हें बहुत याद करता हूं। वह भले ही यहां हमारे साथ नहीं है, लेकिन उनकी यादें, उनका प्यार और आशीर्वाद हमेशा हमारे पास रहेगा। पत्र में मैं उनके साथ बिताए कुछ यादगार पलों की बात करते हुए उनसे यही कहूंगा कि वह जहां भी रहें अच्छे से रहें और हमेशा अपना प्यार पहले की तरह दूसरों पर लुटाते रहें।
किसी प्रयोजन विशेष से संबंधित शब्दों के साथ ‘पत्र’ शब्द जोड़ने से कुछ नए शब्द बनते हैं, जैसे-प्रशस्ति-पत्र, समाचार-पत्र। आप भी ‘पत्र’ के योग से बनने वाले दस शब्द लिखिए।
‘पत्र’ जोड़ने से बनने वाले दस शब्द निम्नलिखित हैं।
1- प्रमाण-पत्र 2- प्रेम-पत्र
3- मान-पत्र 4- संधि-पत्र
5- प्रार्थना-प्रत्र 6- आवेदन-पत्र
7- बधाई-पत्र 8- त्याग-पत्र
9- निमंत्रण-पत्र 10- शिकायत-पत्र।
‘व्यापारिक’ शब्द ‘व्यापार’ के साथ ‘इक’ प्रत्यय के योग से बना है। ‘इक’ प्रत्यय के योग से बनने वाले शब्दों को अपनी पाठ्यपुस्तक से खोजकर लिखिए।
पाठ्यपुस्तक से खोजे गए ‘इक’ प्रत्यययुक्त शब्दः
दो स्वरों के मेल से होने वाले परिवर्तन को स्वर संधि कहते हैं- जैसे-रवींद्र = रवि + इंद्र। इस संधि में इ + इ = ई हुई है। इसे दीर्घ संधि कहते हैं। दीर्घ स्वर संधि के और उदाहरण खोजकर लिखिए। मुख्य रूप से स्वर संधियाँ चार प्रकार से पायी गयी हैं- दीर्घ, गुण, वृद्धि और यण। ”स्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद ”स्व या दीर्घ अ, इ, उ आए तो ये आपस में मिलकर क्रमशः दीर्घ आ, ई, ऊ हो जाते हैं, इसी कारण इस संधि को दीर्घ संधि कहते हैं| जैसे- संग्रह + आलय = संग्रहालय, महा + आत्मा = महात्मा।
इस प्रकार के कम-से-कम दस उदाहरण खोजकर लिखिए और अपनी शिक्षिका/शिक्षक को दिखाइए।
संधि के चार प्रकार और उनके उदारहणः
1- दीर्घ संधि
2- गुण संधि
3- वृद्धि संधि
4- यण संधि