पाठ से
गुड़िया का संग्रह करने में केशव शंकर पिल्लै को कौन-कौन सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
गुड़ियों का संग्रह करने में केशव शंकर पिल्लै को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा| सर्वप्रथम तो गुड़ियाँ बहुत महँगी होती थी और बहुत सारी गुड़ियां खरीदने के लिए बहुत सारे धन की जरुरत होती है| साथ ही गुडियो के खराब होने का डर होता है तो इसलिए उनको सुरक्षित रखना भी केशव शंकर पिल्लै के लिए एक चुनौती थी| इसके अलावा भी उन्हें अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ा|
पाठ से
वे बाल चित्रकला प्रतियोगिता क्यो करना चाहते थे?
केशव शंकर का मन जब बच्चों में लग गया तब उन्हें पूरे देश के बच्चों को एक जगह एकत्रित करने का विचार आया। इसके लिए उन्होंने चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन करने के बारे में सोचा| इस चित्रकला प्रतियोगिता के बहाने पूरे देश के बच्चे एक दूसरे से मिलते और उन्हें अलग अलग संस्कृति के बारे में जानने का मौका मिलता। उनमें विश्वबंधुत्व की भावना जगाने के लिए केशव ने इस प्रतियोगिता का आयोजन किया। केशव की पत्रिका शंकर्स वीकली द्वारा 1949 में बाल चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया था। संक्षेप में कहें तो उनका चित्रकला प्रतियोगिता आयोजन करने के पीछे मूल उद्देश्य विश्वभर के बच्चों को एक मंच पर लाना था|
पाठ से
केशव शंकर पिल्लै ने बच्चों के लिए विश्वभर की चुनी गई गुड़ियों का संग्रह क्यों किया?
केशव शंकर पिल्लै ने विश्वभर की चुनी गई गुड़ियों का संग्रह किया। इन गुड़ियों के माध्यम से वो बच्चों को भारत के हर राज्य और विदेश के रहन सहन, तौर तरीकों, फैशन, वेशभूषाओं और रीति रिवाजों से परिचित कराना चाहते थे। इन गुड़ियों के माध्यम से वे बच्चों को अलग अलग संस्कृति के बारे में परिचित कराना चाहते थे| वे चाहते थे कि बच्चों के लिए एक ऐसा माहौल तैयार किया जाए जहाँ बच्चे हस्ते-खेलते गंभीर बातों को जान जाएँ और समाज व संस्कृति के गूढ़ तथ्यों को समझें|
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केशव शंकर पिल्लै हर वर्ष छुट्टियों में कैंप लगाकर सारे भारत के बच्चों को एक जगह मिलने का अवसर देकर क्या करना चाहते थे?
बच्चों के विकास के लिए केशव शंकर ने एक और योजना बनाई। उन्होंने आर्ट क्लब और हॉबी सेंटर खोला। यहां वो हर साल छुट्टियों में 3-4 कैंप लगाकर सारे भारत के बच्चों को एक जगह मिलने का अवसर देते थे| ताकि सभी बच्चे एक-दूसरे के रीति-रिवाजों से परिचित हो सकें। सभी में विश्वबंधुत्व की भावना बनी रहे। ये बच्चे ही देश का भविष्य होते हैं। जब वे एक-दूसरे को जानेंगे तभी एक-दूसरे के हित का काम भी करेंगे। अपने बाल प्रेम के चलते केशव शंकर देश ही नहीं पूरी दुनिया में विख्यात हो गए।
तरह-तरह के काम
केशव ने कार्टून बनाना, गुड़ियों व पुस्तकों का संग्रह करना, पत्रिका में लिखना व पत्रिका निकालना, बाल चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन व बच्चों का सम्मेलन कराना जैसे तरह-तरह के काम किए। उनको किसी एक काम के लिए भी तरह-तरह के काम करने पड़े होंगे। अब बताओ कि-
क) कार्टून बनाने के लिए उन्हें कौन-कौन से काम करने पड़े होंगे?
ख) बच्चों के लिए बाल चित्रकला प्रतियोगिता कराने के लिए क्या-क्या करना पड़ा होगा?
ग) केशव शंकर पिल्ले की तरह कुछ और भी लोग हुए हैं जन्होंने तरह-तरह के काम करके काफी नाम कमाया। तुम्हारी पसंद के वो कौन-कौन लोग हो सकते हैं? तुम उनमें से कुछ के नाम लिखो और उन्होंने जो कुछ विशेष काम किए हैं उनके नाम के आगे उसका भी उल्लेख करो।
क) केशव शंकर ने कार्टून बनाने के लिए सबसे पहले ड्राइंग करना सीखा होगा। साथ ही उन्होंने समाज में लोगों से मिल अच्छाई और बुराई को जाना होगा। कार्टून बनाने में बुद्धि का बहुत प्रयोग होता है। अपनी बात को किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाए बिना कह देना ये एक बड़ी बात है। साथ ही उन्होंने समाज को बेहतर तरीके से समझा भी होगा ताकि वे समाज में व्याप्त बुराइयों को अपने कार्टूनों के माध्यम से बता सकें|
ख) च़ित्रकला प्रतियोगिता के लिए शंकर ने सबसे पहले एक बड़ी जगह खोजी होगी। जहां देश भर से आए बच्चे एक साथ बैठकर चित्रकला प्रतियोगिता में भाग ले सकें। इसके अलावा इतनी बड़ी प्रतियोगिता करवाने के लिए उन्होंने फंड भी इकट्ठा किया होगा। साथ ही प्रतियोगिता के प्रचार प्रसार के लिए पर्चे छपवाए होंगे। इसके बाद इन पर्चों को दूसरे राज्यों और शहरों में बंटवाया होगा। जिससे बच्चों को प्रतियोगिता के बारे में जानकारी मिल सके। साथ ही प्रतियोगिता के लिए विषय का चयन भी पहले से किया गया होगा। जीतने वाले प्रतियोगी को इनाम में क्या देना है, ये भी पहले से तय होगा।
ग) डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - राधाकृष्णन आजाद भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे। उन्होंने बच्चों को शिक्षित करने में अपना योगदान दिया। राधाकृष्णन प्रसिध्य शिक्षक भी थे। उनकी याद में हर वर्ष 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। राधाकृष्णन को मूलतः शिक्षा के प्रति उनके योगदान के लिए याद किया जाता है और एक राष्ट्रपति के तौर पर कम एक शिक्षक के तौर पर उन्हें ज्यादा याद किया जाता है|
मदर टेरेसा - मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन समाज सेवा में लगा दिया। वो दलितों एवं पीडितों की सेवा में पक्षपात नहीं करती थीं। उन्होंने सद्भाव बढ़ाने के लिए संसार का दौरा किया है। उनकी मान्यता है कि 'प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है।'
जवाहर लाल नेहरू - नेहरू जी भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। उन्होंने देश को आजाद कराने में विशेष योगदान दिया। नेहरू जी, गांधी के विचारों से प्रभावित थे।
महात्मा गांधी - गांधी जी का नाम भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। गांधी ने अहिंसा के दम पर अंग्रेजों को भारत से खदेड़ दिया था।
घर
तुमने इस पाठ में गुड़ियाघर के बारे में पढ़ा। पता करो कि ‘चिड़ियाघर’, ‘सिनेमाघर’ और ‘किताबघर’ कौन और क्यों बनवाता है? तुम इनमें से अपनी पसंद के किसी एक घर के बारे में बताओ जहाँ तुम्हें जाना बेहद पसंद हो?
‘चिड़ियाघर’, ‘सिनेमाघर’ और ‘किताबघर’, ये तीनों चीजें लोगों के मनोरंजन और ज्ञान के लिए सरकार द्वारा बनवाए जाते हैं। इसको बनाने में कुछ प्राइवेट कंपनी भी उनकी मदद करती हैं। इनमें से मुझे चिड़ियाघर खासा पसंद है।
चिड़ियाघर बहुत बड़े क्षेत्रफल में फैला होता है। यहां बड़े, बूढ़े, बच्चे हर कोई जा सकता है। चिड़ियाघर में दुर्लभ जानवर एवं अन्य जानवरों का संग्रह रहता है। जैसे शेर, चीता, हाथी, बाघ, मछलियां, मगरमच्छ, घड़ियाल और हिरन आदि जानवर देखने को मिलते हैं। चिड़ियाघर में जानवरों के बारे में काफी जानकारी प्राप्त होती है। इसके अलावा यहां लोग घूमने फिरने और खेलने आते हैं। चिड़ियाघर इतना बड़ा होता है कि एक दिन में इसे घूमना संभव नहीं है। ये बच्चों की पसंदीदा जगह होती है।
संग्रह की चीज़ें
आमतौर पर लोग अपनी मनपंसद, महत्वपूर्ण और आवश्यक चीज़ों का संग्रह करते हैं। नीचे कुछ चीज़ों के नाम दिए गए हैं। जैसे
क) डाक टिकट
ख) पुराने सिक्के
ग) गुड़िया
घ) महत्वपूर्ण पुस्तकें
ङ) चित्र
च) महत्वपूर्ण व्यक्तियों के हस्तलेख
इसके अतिरिक्त भी तुम्हारे आसपास कुछ चीज़ें होती है जिसे लोग बेकार या अनुपयोगी समझकर कूड़ेदान या अन्य उपयुक्त जगह पर ऱख या फेंक देते हैं।
क) तुम पता करो यदि उसका भी कोई संग्रह करता है तो क्यों?
ख) उसका सग्रह करने वालों को क्या परेशानियाँ होती होंगी?
क) घर में कई ऐसी चीजें होती हैं जो बेकार हो जाती हैं। फिरभी कुछ लोग उन चीजों को संभालकर रखते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें लगता होगा कि ये खराब चीज भी कभी ना कभी काम आ सकती है। उन्हें चीजों की कद्र होती है और खराब होने के बाद भी वे उसे फेंकना नहीं चाहते।
ख) चीजों को पैसा लगाकर खरीदा जाता है। ऐसे में चीज खराब होने के बाद भी वो उसे फेंकना नहीं चाहते। कुछ लोग ये भी सोचते हैं कि खराब चीज को कबाड़ में बेच दिया जाएगा। इसके अलावा मोह के कारण भी लोग चीजों को फेंकने से कतराते हैं और उसका संग्रह कर लेते हैं।
(इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी बड़ों की सहायता ले सकते हो)
लड़ाई भी खेल जैसी
“अनेक देशों के बच्चों की यह फ़ौज अलग-अलग भाषा, वेशभूषा, में होकर भी एक जैसी ही है। कई देशों के बच्चों को इक्टठा कर दो, वे खेलेंगे या लड़ेंगे और यह लड़ाई भी खेल जैसी ही होगी।
वे रंग, भाषा जाति पर कभी नहीं लड़ेंगे।”
ऊपर के वाक्यों को पढ़ो और बताओ कि-
क) यह कब, किसने, किसमें और क्यों लिखा?
ख) क्या लड़ाई भी खेल जैसी हो सकती है? अगर हां तो कैसे और उस खेल में तुम्हारे विचार से क्या-क्या हो सकता है।
क) यह वाक्य उस समय लिखा गया जब केशव शंकर ने चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया था। इस वाक्य को स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने शंकर्स वीकली के बाल विशेषांक में लिखा था। नेहरू जी को बच्चों से बहुत लगाव था। वो इस प्रतियोगिता के आयोजन से बहुत खुश थे। वो पूरे देश को एकसाथ देखना एक साथ देखने की इच्छा रखते थे और उनकी ये ख्वाहिश इन बच्चों ने पूरी कर दी थी।
ख) हां, लड़ाई भी खेल जैसी हो सकती है। जब बच्चे आपस में लड़ते हैं तो उनको देखकर अक्सर ऐसा लगता है कि खेल रहे हैं। बच्चों का मन कोमल होता है। उनमें हिंसा जैसी कोई भावना नहीं होती है। बच्चे अक्सर खिलौनों के लिए लड़ते हैं। कभी घर घर खेलते भी लड़ पड़ते हैं। बच्चों या बड़ों को खेल वाली ही लड़ाई लड़नी चाहिए। बड़ों की लड़ाई में अक्सर हिंसा देखने को मिलती है। ऐसी लड़ाई समाज को खराब करने का काम करती है। मानव को हर काम ऐसा करना चाहिए जो खेल खेल में हो जाए, चाहे फिर वो लड़ाई ही क्यों ना हो।
सुबह से शाम
केशव शंकर पिल्लै बच्चों के लिए सुबह से शाम तक काम में लगे रहते थे। तुम सुबह से शाम तक कौन-कौन से काम करना चाहोगे? नीचे उपयुक्त जगह पसंद के काम को भी लिखो और सही का निशान लगाओ। तुम उसका कारण भी बताओ।