‘कण-कण में है व्याप्त वही स्वर --------कालकूट फणि की चिंतामणि’
(क) वही स्वर, वह ध्वनि एवं वही तान किसके लिए/किस भाव के लिए प्रयुक्त हुआ है?
(ख) वही स्वर, वह ध्वनि एवं वही तान से संबंधित भाव का ‘रुद्ध-गीत की क्रुद्ध तान है/निकली मेरी अंतरतर से’- पंक्तियों से क्या कोई संबंध बनता है?
(क) वही स्वर, वही ध्वनि और वही तान समाज के उस वर्ग की ओर इंगित करती है जिसका विकास नहीं हो पाया है। समाज का ये वर्ग संघर्षों से दूर है। वो अब गतिशील नहीं रहा जड़ हो गया है| उसका विकास रुक गया है। उनकी प्रगति नहीं हो पा रही है। इसलिए इस पंक्ति में कवि लोगों को संघर्ष करने के लिए कह रहा है ताकि ये लोग फिर से प्रेरित हों संघर्ष करें और नए रास्तों पर चल पड़ें|
(ख) इन पंक्तियों में कवि का आक्रोश दिख रहा है। कवि समाज में फैली जड़ता, रूढ़ियां और कुरीतियां समाप्त करना चाहता है। इसलिए वह लोगों को जागरूक कर परिवर्तन की लहर लाने का प्रयास कर रहा है। कवि कहता है कि अगर मानव परिवर्तन की मांग उठाए तो बदलाव निश्चित होगा।
नीचे दी गई पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
‘सावधान! मेरी वीणा में------दोनों मेरी ऐंठी हैं।’
कवि समाज में परिवर्तन की लहर लाना चाहता है। इस पंक्ति में बताया गया है जीवन रूपी वीणा को सार्थक बनाने के लिए चिंगारी उत्पन्न होना जरूरी है। अगर समाज में बदलाव नहीं हुआ तो बाद में लोगों को कष्ट ही मिलेगा। अगर क्रांति छेड़ दें तो वर्तमान व्यवस्था छिन्न—भिन्न हो जाएगी। लोगों को जागरूक करते—करते अब वो टूटने लगा है लेकिन उसका उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है।
स्वाधीनता संग्राम के दिनों में अनेक कवियों ने स्वाधीनता को मुखर करने वाली ओजपूर्ण कविताएं लिखीं। माखनलाल चतुर्वेदी, मैथिलीशरण गुप्त और सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की ऐसी कविताओं की चार-चार पंक्तियां इकट्ठा कीजिए जिनमें स्वाधीनता के भाव ओज से मुखर हुए हैं।
(1) वेदों से बलिदानों तक जो होड़ लगी
प्रथम प्रभात किरण से हिम में जोत जागी
उतर पड़ी गंगा खेतों खलिहानों तक
मानो आँसू आये बलि-महमानों तक
सुख कर जग के क्लेश
प्यारे भारत देश।।
— माखनलाल चतुर्वेदी
जय भारत-भूमि-भवानी!
अमरों ने भी तेरी महिमा बारंबार बखानी।
तेरा चन्द्र-वदन वर विकसित शान्ति-सुधा बरसाता है;
मलयानिल-निश्वास निराला नवजीवन सरसाता है।
हदय हरा कर देता है यह अंचल तेरा धानी;
जय जय भारत-भूमि-भवानी!
— मैथिलीशरण गुप्त
युवकजनों की है जान ;
ख़ून की होली जो खेली ।
पाया है लोगों में मान,
ख़ून की होली जो खेली ।
रँग गये जैसे पलाश;
कुसुम किंशुक के, सुहाए,
कोकनद के पाए प्राण,
ख़ून की होली जो खेली ।
—सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
कविता के मूलभाव को ध्यान में रखते हुए बताइए कि इसका शीर्षक ‘विप्लव गायन’ क्यों रखा गया होगा?
कवि समाज में फैली जड़ता, रूढ़िवादिता और कुरीतियों के खिलाफ जाग्रति लाना चाहता है| वो हर किसी को बता रहा है कि स्वाधीनता की मांग उठाओ, तभी परिवर्तन संभव है। समाज का विकास तभी संभव है जब हम आवाज को बुलंद करेंगे। इसलिए कवि ने विप्लव गायन छेड़ा है जिससे लोगों तक कवि की बात पहुंच सके। अब शांति और प्रेम से बात नहीं बन रही है इसलिए क्रांति की चिंगारी जलना जरूरी है। आक्रोश से ही इन कुरीतियों को भस्म किया जा सकता है।
कविता में दो शब्दों के मध्य (-) का प्रयोग किया गया है, जैसे- ‘जिससे उथल-पुथल मच जाए’ एवं ‘कण-कण में है व्याप्त वही स्वर’। इन पंक्तियों को पढि़ए और अनुमान लगाइए कि कवि ऐसा प्रयोग क्यों करते हैं?
कविता में उथल—पुथल, कण—कण, क्षुब्ध—युद्ध, भ्रू—विलास आदि कई ऐसे शब्दों का इस्तेमाल हुआ है जिसके मध्य में (-) का इस्तेमाल हुआ है। हिंदी के कुछ शब्दों को साथ में ही बोला जाता है। अगर एक ही शब्द का प्रयोग करेंगे तो वो अधूरा लगेगा और कवि उस शब्द के माध्यम से जो भी कहना चाहता है वो कह भी नहीं पायेगा| जैसे उथल, पुथल के बिना अधूरा सा लगता है। तभी लोग उसका सही अर्थ समझ पाते हैं। साथ ही ऐसे शब्दों से पता चलता है कि कवि को हिंदी भाषा का अच्छा ज्ञान है। इन शब्दों के इस्तेमाल से कविता हिंदी के अनुसार मजबूत मानी जाती है और हम अपनी बात को भी प्रभावी ढंग से कह पाते हैं|
कविता में (,-।) आदि जैसे विराम चिह्नों का उपयोग रुकने, आगे-बढ़ने अथवा किसी खास भाव को अभिव्यक्त करने के लिए किया जाता है। कविता पढ़ने में इन विराम चिह्नों का प्रभावी प्रयोग करते हुए काव्य पाठ कीजिए। गद्य में आमतौर पर है शब्द का प्रयोग वाक्य के अंत में किया जाता है, जैसे-देशराज जाता है। अब कविता की निम्न पंक्तियों को देखिए-
‘कण-कण में है व्याप्त-----वही तान गाती रहती है,’
इन पंक्तियों में है शब्द का प्रयोग अलग-अलग जगहों पर किया गया है। कविता में अगर आपको ऐसे अन्य प्रयोग मिलें तो उन्हें छाँटकर लिखिए।
कविता की पंक्तियों के मध्य में ‘है’ शब्द के प्रयोग वाली पंक्तियां-
(1) टूटी हैं मिजराबें अंगुलियां
(2) कंठ रुका है महानाश का
(3) रोम-रोम गाता है वह ध्वनि
(4) अब क्षुब्ध—युद्ध होता है
निम्न पंक्तियों को ध्यान से देखिए-
‘कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ----एक हिलोर उधर से आए’,
इन पंक्तियों के अंत में आए, जाए जैसे तुक मिलानेवाले शब्दों का प्रयोग किया गया है। इसे तुकबंदी या अंत्यानुप्रास कहते हैं। कविता से तुकबंदी के और शब्द/पद छांटकर लिखिए। तुकबंदी के इन छाँटे गए शब्दों से अपनी कविता बनाने की कोशिश कीजिए/कविता पढि़ए।
कविता से तुकबंदी के और शब्द/पद-
(1) बैठी हैं, ऐंठी हैं।
(2) रुद्ध होता है, युद्ध होता है।
(3) स्वर से, अंतरतर से।
(4) ध्वनि, चिंतामणि।
(5) समझ आया हूँ, परख आया हूँ।
(6) जीवन के, महानाश के
छात्र तुकबंदी के इन छाँटे गए शब्दों से अपनी कविता स्वयं बनाने की कोशिश करें तथा उसे पढ़ें।