किन बातों से ज्ञात होता है कि माधवदास का जीवन संपन्नता से भरा था और किन बातों से ज्ञात होता है कि वह सुखी नहीं था?
माधवदास का जीवन संपन्नता से भरा हुआ था क्योंकि उसके पास बहुत धन था। सोने, चांदी, हीरे, जवाहरात से उसके खजाने भरे हुए थे। वो उस शहर का सबसे अमीर आदमी माना जाता था। उसने संगमरमर से अपना महल बनवाया था जिसमें सुंदर बगीचा था। बगीचे में पानी के फव्वारे और तरह—तरह के फूल थे।
माधवदास सुखी नहीं था क्योंकि वो अकेला था। उसके घर में परिवार नहीं था। उसके आंगन में कोई चहचहाता नहीं था। वो अकेले ही शाम को अपने बगीचे में बैठ वक्त गुजार देता था। इन सभी बातों से उसकी संपन्नता और उसके दुख का अंदाजा होता है|
माधवदास क्यों बार-बार चिडि़या से कहता है कि यह बगीचा तुम्हारा ही है? क्या माधवदास निःस्वार्थ मन से ऐसा कह रहा था? स्पष्ट कीजिए।
माधवदास बार-बार चिड़िया से कह रहे थे कि वो इसे अपना ही बगीचा समझे। वो अपने सूने बगीचे में चिड़िया को देख बहुत खुश थे। माधवदास चिड़िया के जरिए अपने अकेलेपन को दूर करना चाहते थे। चिड़िया से बात करके उन्हें खुशी मिलती थी| इसलिए उन्होंने चिड़िया से कहा कि वो इस बगीचे में रहे और जहां चाहे घूमे। इससे उसका भी मन लगा रहेगा लेकिन माधवदास ने चिड़िया से ये सब स्वार्थ के चलते कहा था। क्योंकि माधवदास अकेला था। उससे बात करने वाला, सुख-दुख बांटने वाला कोई नहीं था। इतनी संपदा होते हुए भी उसका मन सूना था। अत: वह चिड़िया को अपने पास रोककर खुद खुश रहने का बहाना ढूंढ रहा था। अतः माधवदास ने चिड़िया से यह बात निःस्वार्थ भाव से नहीं कही थी ऐसा कहने में उसका स्वार्थ था|
माधवदास के बार-बार समझाने पर भी चिडि़या सोने के पिंजरे और सुख-सुविधाओं को कोई महत्व नहीं दे रही थी। दूसरी तरफ़ माधवदास की नजर में चिडि़या की जिद का कोई तुक न था। माधवदास और चिडि़या के मनोभावों के अंतर क्या-क्या थे? अपने शब्दों में लिखिए।
माधवदास बार-बार चिड़िया से कह रहा था कि वो यहीं रुक जाए। वो उसे सोने का पिंजड़ा बनवाकर देगा। वो सोने, चांदी, हीरे, मोती से उसे लाद देगा। लेकिन चिड़िया के लिए इन कीमती चीजों का कोई मूल्य नहीं था। उसे बस अपनी आजादी, मां, भाई, धूप, छाँव, सूरज की रोशनी आदि से प्यार था| वो तो बस जरा हवा खाने उस बगीचे में जा पहुंची थी। उसे तो ये भी नहीं पता था कि साहूकार क्या होता है। उसके लिए इन सोने, चांदी और महल का कोई मतलब नहीं था।
चिड़िया ने माधवदास से कहा कि वह तो अपनी मां, भाई, सूरज, धूप, घास, पानी और फूलों से प्यार करती है। उसे जल्दी घर जाना है क्योंकि उसकी मां राह देख रही होगी। अंधेरा हो गया तो वो राह भूल जाएगी। चिड़िया के बार-बार इस तरह बोलने पर भी माधवदास को उसकी भावनाओं की कोई कद्र नहीं थी। वो हर बार उससे यही कहता कि अभी अंधेरा कहां हुआ है। अभी तो उजेला है, तुम चली जाना। साथ ही वो चिड़िया को कई प्रलोभन भी दे रहा था जिससे चिड़िया उसके पास रुक जाए। माधवदास ऐसा स्वार्थ के वशीभूत होकर कर रहा था
कहानी के अंत में नन्ही चिडि़या का सेठ के नौकर के पंजे से भाग निकलने की बात पढ़कर तुम्हें कैसा लगा? चालीस-पचास या इससे कुछ अधिक शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
जैसे ही नौकर चिड़िया को पकड़ने के लिए आगे बढ़ता है वो उसके हाथों से निकलकर भाग जाती है। ये पढ़कर बहुत खुशी मिलती है। चिड़िया उस कपटी माधवदास के चंगुल से निकलकर भागती है और सीधा अपनी मां की गोद में ही सांस लेती है। चिड़िया ने बहुत ही होशियारी से काम लिया। वो अभी बच्ची थी लेकिन उसने माधवदास के इरादों पर पानी फेर दिया। चिड़िया को भी पता चल गया होगा कि इस दुनिया में कितने स्वार्थी लोग होते हैं जो उसे उसकी मां से दूर करने तक को तैयार थे। जब चिड़िया को उसकी आजादी मिली तब पाठक के चेहरे पर मुस्कान आना लाजमी है।
‘माँ मेरी बाट देखती होगी’ नन्ही चिडि़या बार-बार इसी बात को कहती है। आप अपने अनुभव के आधार पर बताइए कि हमारी जिंदगी में माँ का क्या महत्त्व है?
चिड़िया का बार-बार ये कहना कि ‘माँ मेरी बाट देखती होगी’ से पता चलता है कि वो अपनी मां से दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करती है। हर किसी को अपनी मां से प्यार होता है। बचपन ने मां ही होती हमारी हर छोटी-बड़ी चीजों का ख्याल रखती है। अपना एक रोटी कम खा लेगी लेकिन अपने बच्चे को पेट भर खिलाती है। बड़े होने पर भी मां का प्यार खत्म नहीं होता है। अपने बच्चे के दूर रहने पर मां का मन उसके पास ही रखा रहता है। वो हर पल यही सोचती है कि पता नहीं बच्चे ने खाना खाया होगा या नहीं। बच्चे भी अपनी मां के हाथ के खाने को हमेशा याद करते हैं। बच्चों के लिए उनकी मां से अच्छा खाना तो कोई बना ही नहीं सकता।
इस कहानी का कोई और शीर्षक देना हो तो आप क्या देना चाहेंगे और क्यों?
इस कहानी में एक स्वार्थी साहूकार माधवदास है और एक छोटी सी चिड़िया है। दोनों के बीच हुई वार्तालाप से ये कहानी तैयार हुई है। इस कहानी का एक और शीर्षक होता- ‘सयानी चिड़िया’। कहानी के अंत में चिड़िया ने अपनी समझदारी के बलबूते ही उस माधवदास से छुटकारा पाया। इसलिए ये शीर्षक भी उचित हो सकता था।
इस कहानी में आपने देखा कि वह चिडि़या अपने घर से दूर आकर भी फिर अपने घोंसले तक वापस पहुँच जाती है। मधुमक्खियों, चीटियों, ग्रह-नक्षत्रें तथा प्रकृति की अन्य विभिन्न चीजों में हमें एक अनुशासनबद्धता देखने को मिलती है। इस तरह के स्वाभाविक अनुशासन का रूप आपको कहाँ-कहाँ देखने को मिलता है? उदाहरण देकर बताइए।
मानव के अलावा पूरी प्रकृत्ति ही अनुशासन में चलती है। जैसे चांद और सूरज अपने समय पर निकलते और समय से ही ढल जाते हैं। पौधों में फूल और फल आने का समय निश्चित होता है। सर्दी, गर्मी और बरसात जैसे मौसम भी ठीक उसी समय पर आते हैं जब उन्हें आना होता है। पशु-पक्षी एक निश्चित समय पर ही अपने घर से खाने की तलाश में निकलते हैं और फिर शाम डलने तक लौट आते हैं। इसके अलावा मंदिरों का अपने समय पर खुल जाना अनुशासन है। इस प्रकार हम अगर यह कहें की मानव के अलावा प्रकृति में प्रत्येक बस्तु पूर्ण अनुशासन में रहती है बस मानव ही अनुशासन में नहीं रहता तो यह बता अतिश्योक्ति नहीं होगी|
सोचकर लिखिए कि यदि सारी सुविधाएँ देकर एक कमरे में आपको सारे दिन बंद रहने को कहा जाए तो क्या आप स्वीकार करेंगे? आपको अधिक प्रिय क्या होगा- ‘स्वाधीनता’ या ‘प्रलोभनोंवाली पराधीनता’? ऐसा क्यों कहा जाता है कि पराधीन व्यक्ति को सपने में भी सुख नहीं मिल पाता। नीचे दिए गए कारणों को पढ़ें और विचार करें-
मैं सुख-सुविधाओं के बावजूद एक कमरे में रहना कभी स्वीकार नहीं करूंगी।
क. एक कमरे में बंद व्यक्ति के पास कितनी ही सुख-सुविधाएं क्यों ना हों लेकिन स्वतंत्रता जैसी कीमती चीज उसके पास नहीं होती। ऐसे में वो पराधीनता का जीवन जीता है। वो स्वयं कभी सुखी नहीं होता और इसी वजह से दूसरों को दुख देता है।
ख. जो व्यक्ति पूरा समय एक कमरे में रहेगा वो सपने देखना भूल जाता है। क्योंकि उसे पता होता है कि उसका जीवन उस एक कमरे तक ही सीमित है। इससे बाहर के बारे में सोचने की आजादी उसे नहीं है। इसलिए वो सपने भी नहीं देखता है।
ग. पराधीन व्यक्ति के पास बंद कमरे में सारी सुविधाएं होती हैं। इसलिए वो उसे ही अपना जीवन समझ लेता है। उसे पता ही नहीं है कि बाहर और कौन से सुख हैं। वो अपनी पराधीनता की दुनिया में मग्न रहता है और उसे सपने देखने का अवसर ही नहीं मिलता है।
आपने गौर किया होगा कि मनुष्य, पशु, पक्षी- इन तीनों में ही माँएँ अपने बच्चों का पूरा-पूरा ध्यान रखती हैं। प्रकृति की इस अद्भुत देन का अवलोकन कर अपने शब्दों में लिखिए।
एक मां अकेले ही अपने बच्चे को पूरी दुनिया का प्यार और खुशी दे सकती है। इसलिए प्रकृति ने हम सब को अद्भुत मां दी है। अगर हमारे आस-पास कोई भी ना हो तो मां एक दोस्त, रिश्तेदार और साथी की कमी पूरी कर देती है। अपने बच्चे की मन की बात को बिना कहे जान लेने की मां में असीम शक्ति होती है। दूर बैठे उसके बच्चे को अगर कोई कष्ट होता है तो मां को वो भी पता चलते देर नहीं लगती। मां का मन हमेशा अपने बच्चे के साथ जुड़ा रहता है। फिर चाहे वो मनुष्य की मां हो या पशु की या पक्षी की। बच्चे को बचपन से बड़े तक जो भी अच्छी शिक्षाएं होती हैं वो सब मां ही देती है। बच्चों का फर्ज बनता है कि वे भी अपनी मां को एक मां बनकर ही प्यार करें।
पाठ में पर शब्द के तीन प्रकार के प्रयोग हुए हैं-
(क) गुलाब की डाली पर एक चिड़या आन बैठी।
(ख) कभी पर हिलाती थी।
(ग) पर बच्ची काँप-काँपकर माँ की छाती से और चिपक गई।
• तीनों ‘पर’ के प्रयोग तीन उद्देश्यों से हुए हैं। इन वाक्यों का आधार लेकर आप भी ‘पर’ का प्रयोग कर ऐसे तीन वाक्य बनाइए जिनमें अलग-अलग उद्देश्यों के लिए ‘पर’ के प्रयोग हुए हों।
विभिन्न उद्देश्यों में पर के प्रयोग-
पर- पिंजरे में बंद चिड़िया उड़ने के लिए अपने पर फड़फड़ा रही है।
पर- पानी का गिलास मेज पर रखा है।
पर- मां की बात ठीक है पर हमें पापा की भी सुन लेनी चाहिए।
पाठ में तैंने, छनभर, खुश करियो-तीन वाक्यांश ऐसे हैं जो खड़ी बोली हिंदी के वर्तमान रूप में तूने, क्षणभर, खुश करना लिखे-बोले जाते हैं लेकिन हिंदी के निकट की बोलियों में कहीं-कहीं इनके प्रयोग होते हैं। इस तरह के कुछ अन्य शब्दों की खोज कीजिए।
हिंदी के निकट की बोलियों में प्रयोग होने वाले शब्द-