नगर से बाहर निकलकर दो पग चलने के बाद सीता की क्या दशा हुई?
नगर से बाहर निकलकर दो पग चलते ही सीता को थकान महसूस होने लगती है| उन्हें पसीना आने लगता और गर्मी की वजह से होंठ भी सूखने लगते हैं।
अब और कितनी दूर चलना है, पर्णकुटी कहाँ बनाइएगा’- किसने किससे पूछा और क्यों?
जब भगवान राम को वनवास मिला था तो उनके साथ सीता और लक्ष्मण भी गए थे। पाठ की ऊपर दी गई लाइनें सीता भगवान श्री राम से कह रही हैं। वह कह रही हैं कि अब कितनी दूर चलना है, कुटिया कहां बनाएंगे। ऐसा इसलिए कहती हैं क्योंकि वह थोडा सा पैदल चलने के बाद थक गयी हैं|
राम ने थकी हुई सीता की क्या सहायता की?
भगवान राम ने सीता के पैरों से सबसे पहले कांटे निकाले। ऐसा इसलिए ताकि उनकी पैर की पीड़ा दूर हो और उन्हें आराम करने का ज्यादा से ज्यादा समय मिल जाए।
दोनों सवैयों के प्रसंगों में अंतर स्पष्ट करो।
पहले सवैये में बताया गया है कि श्री राम के साथ सीता और लक्ष्मण ने भी वनवास पर जाने का फैसला किया था। सीता जैसे ही नगर से बाहर निकलती हैं तेज धूप की वजह से उन्हें पसीना आने लगता है। धूप इतनी तेज होती है कि उनके होंठ भी सूखने लगते हैं। जैसे-जैसे सीता राम और लक्ष्मण के साथ वन की ओर बढ़ती जाती हैं उनमें व्याकुलता बढ़ती जाती है। एक समय ऐसा आता है कि वह राम से पूछती हैं कि कहां पर पर्णकुटी बनाना है। सीता की इस व्याकुलता को देख राम भावुक हो जाते हैं और उनकी आंखें भर आती हैं।
वहीं दूसरे सवैये में बताया गया है कि सीता इतनी थक जाती हैं कि वह राम से कहती हैं कि जब तक लक्ष्मण पानी लेकर आते हैं वह पेड़ की छाया में थोड़ा आराम कर लेती हैं। तभी श्रीराम सीता के पैरों से कांटे निकालने लगते हैं ताकि उनकी तकलीफ कम हो और उन्हें थोड़ा आराम मिल जाए। राम को इस तरह से पैरों से कांटे निकालता देख सीता प्यार में पुलकित हो उठती है।
पाठ के आधार पर वन के मार्ग का वर्णन अपने शब्दों में करो।
वन का रास्ता बहुत कठिन होता है। वन में अनेक जंगली जानवरों के अलावा कटीले पेड़ भी होते हैं। इसी वजह से सीता के पैर में कांटे चुभ जाते हैं। वन में न तो खाने की चीजें मिलती हैं और न ही वह सुरक्षित होता है। चारों तरफ सिर्फ सन्नाटा पसरा रहता है और किसी चीज की भी आहट खतरें की आंशका पैदा कर देती है।
गरमी के दिनों में कच्ची सड़क की तपती धूल में नंगे पँव चलने पर पाँव जलते हैं। ऐसी स्थिति में पेड़ की छाया में खड़ा होने और पाँव धो लेने पर बड़ी राहत मिलती है। ठीक वैसे ही जैसे प्यास लगने पर पानी मिल जाए और भूख लगने पर भोजन। तुम्हें भी किसी वस्तु की आवश्यकता हुई होगी और वह कुछ समय बाद पूरी हो गई होगी। तुम सोचकर लिखो कि आवश्यकता पूरी होने के पहले तक तुम्हारे मन की दशा कैसी थी?
जरूरत के मौके पर जब वह चीज नहीं मिलती है तो मन में व्याकुलता होना स्वाभाविक है। जब तक वह चीज नहीं मिलती मन न चाहते हुए भी उसी तरफ लगा रहता है। बस ऐसा लगता है कि किसी भी तरह से वह आवश्यकता पूरी हो जाए और मन को तसल्ली मिल जाए।
लखि = देखकर धरि = देखकर
पोंछि = पोंछकर जानि = जानकार
ऊपर लिखे शब्दों और उनके अर्थों को ध्यान से देखो। हिंदी में जिस उद्देश्य के लिए हम क्रिया में ‘कर’ जोड़ते हैं, उसी के लिए अवधी में क्रिया में ि (इ) को जोड़ा जाता है, जैसे- अवधी में बैठ + ि = बैठि और हिंदी में बैठ + कर = बैठकर। तुम्हारी भाषा या बोली में क्या होता है? अपनी भाषा के ऐसे छह शब्द लिखो। उन्हें ध्यान से देखो और कक्षा में सुनाओ
मेरी भाषा हिंदी खड़ी बोली है, पर भोजपुरी में निम्नलिखित उद्देश्य के लिए अलग क्रिया के साथ ‘के’ का प्रयोग करते हैं- जैसे-
“मिट्टी का गहरा अंधकार, डूबा है उसमें एक बीज।’’
उसमें एक बीज डूबा है।
जब हम किसी बात को कविता में कहते हैं तो वाक्य के शब्दों के क्रम में बदलाव आता है, जैसे-“छांह घरीक ह्वै ठाढ़े” को गद्य में ऐसे लिखा जा सकता है “छाया में एक घड़ी खड़े होकर”। उदाहरण के आधार पर नीचे दी गई कविता की पंक्तियों को गद्य के शब्दक्रम में लिखो।
- पुर तें निकसी रघुबीर-बधू,
- पुट सूखि गए मधुराधर वै।।
- बैठि बिलंब लौं कंटक काढ़े।
- पर्नकुटी करिहौं कित ह्वै?