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Yatindr Mishra

Class 10th Hindi क्षितिज भाग 2 CBSE Solution
Exercise
  1. शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
  2. बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
  3. सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई…
  4. आशय स्पष्ट कीजिए- (क) ‘फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।’…
  5. काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?…
  6. पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि- (क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली…
  7. बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी…
  8. बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?…
  9. मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
  10. बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।
  11. निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए- (क) यह जरूर है कि शहनाई और…
  12. निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए- (क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद…

Exercise
Question 1.

शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?


Answer:

भारतरत्न, पद्मविभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, संगीत-रसिकों के हृदय और संगीत के नायक अमरुद्दीन उर्फ़ बिस्मिल्लाह खाँ जी का जन्म बिहार में डुमराँव के एक संगीत प्रेमी परिवार में हुआ था। इस कारण डुमराँव उनके संगीत तथा शहनाई के लिए प्रसिद्ध है। शहनाई की दुनिया में शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के पूरक बन गए क्योंकि बिस्मिल्लाह खाँ जी के पिता जी, दादा जी तथा परदादा जी भी शहनाई वादक और संगीत प्रेमी थे और वे अपने संगीत से सभी का मन मोहित कर देते थे। शहनाई बजाने के लिए जिस रीड का प्रयोग किया जाता है वह रीड नरकट (बेंत जाति का प्रसिद्ध पौधा) डुमराँव में सोन नदी के किनारे पर पाया जाता है। इसलिए शहनाई की दुनिया में डुमराँव को याद किया जाता है।



Question 2.

बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?


Answer:

शहनाई ऐसा वाद्य है जिसे मांगलिक अवसरों पर ही बजाया जाता है। बिस्मिल्लाह खाँ जी प्रसिद्ध शहनाई वादक है। वे काशी में विश्वनाथ मंदिर में मंगल ध्वनि बजाते थे। मांगलिक अवसरों पर शहनाई बजाने की सदैव से परंपरा रही है। इस शहनाई बजाने की परंपरा में बिस्मिल्ला खाँ अपने सुर के कारण अब तक के इतिहास में सर्वोपरि रहे हैं। उन्हें हमेशा लगता था कि उनकी शहनाई वादन में कहीं कुछ कमी रह गई है इसलिए वे पूरे अस्सी वर्ष तक सच्ची रियाज़ कर सुर साधना करते रहे। वे संगीत के नायक रहे हैं। उन्होंने सामान्य मांगलिक कार्यों से लेकर अनेक सुप्रसिद्ध मांगलिक कार्यों में शहनाई बजाई है। यही कारण है कि उन्हें शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहा गया है।



Question 3.

सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?


Answer:

सुषिर-वाद्य अर्थात् फूँककर बजाए जाने वाले वाद्य। ऐसे वाद्य जिनमें नाड़ी होती है उन्हें अरब में ‘नय’ बोलते हैं। इस में छेद होता है और अंदर से ये वाद्य खोखले होते है। वैदिक इतिहास में शहनाई का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। इसे संगीत शास्त्रों के अंतर्गत सुषिर-वाद्यों में गिना जाता है। शहनाई एक अत्यंत मधुर स्वर उत्पन्न करने वाला वाद्य है। शहनाई में समस्त राग रागिनियों को आकर्षक सुरों में बाँधा जा सकता हैं। इसलिए शहनाई की तुलना में अन्य कोई सुषिर वाद्य नहीं टिकता और इसलिए शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि दी गई होगी।



Question 4.

आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) ‘फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।’

(ख) ‘मरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।’


Answer:

(क) बिस्मिल्ला खाँ अपनी कला को ही महत्वपूर्ण मानते थे। आशय है कि खुदा सुर को अच्छा बनाए रखे। यदि सुर बिगड़ गया, फट गया तो सब कुछ चला गया क्योंकि उस्ताद जानते थे उनकी पहचान, उनका सम्मान सुर शहनाई ही है और इसीलिए उन्हें फटी लुंगी पहनने से मना किए जाने पर वे कहते हैं कि भगवान उन्हें फटा हुआ सुर न दें। लूंगी आज फटी है तो कल वह सिल भी सकती है परंतु यदि सुर बिगड़ गया तो संभलेगा नहीं| इस प्रकार बिस्मिल्ला खाँ जी खुदा से सुर को बनाए रखने की प्रार्थना करते हैं।

(ख) बिस्मिल्ला खाँ जी पाँचों वक़्त की नमाज पढ़ते थे। बिस्मिल्ला खाँ जी नमाज के बाद सजदे करते हैं कि खुदा उनके सुर को इतना प्रभावशाली, सच्चा, मार्मिक, सुमधुर बना दे कि जिसे सुनकर श्रोताओं की आँखों से भावनाओं के आँसू सच्चे मोती की तरह स्वाभाविक रूप से बह निकलें। उस सुर में मन को करूणापूर्ण कर देने वाली शक्ति हो। हृदय से उनके सुर की प्रशंसा में उद्गार निकल पड़े।



Question 5.

काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?


Answer:

काशी में पुरानी परंपराएँ लुप्त हो रही हैं। संगीत साहित्य और अदब की वे सारी परंपराएँ लुप्त होती जा रही थीं जो खाँ साहब के लिए महत्वपूर्ण थीं। खान-पान संबंधी पुरानी चीज़ें न मिलना जो कि बिस्मिल्ला खाँ की पसंदीदा मलाई बर्फी काशी पक्का महाल से लुप्त हो गई थी। इसके साथ साथ पहले जैसी देशी घी की कचौड़ी तथा जलेबी भी लुप्त हो गई थी। गायक द्वारा रियाज करने में कमी आना। गायकों के मन में संगीतकारों के प्रति समाप्त होता हुआ सम्मान खाँ साहब को व्यथित कर रहा था। बिस्मिल्ला खाँ अपने व्यथित ह्रदय से कहते हैं कि घंटों रियाज को अब कौन पूछता है। कजली, चैती और अदब का जमाना नहीं रहा। इस प्रकार काशी में हो रहे परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे।



Question 6.

पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि-

(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।

(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इंसान थे।


Answer:

बिस्मिल्ला खाँ अपने मजहब के प्रति समर्पित थे। वे अपने धर्म और उत्सवों के प्रति गंभीरता से आस्था रखते थे। बिस्मिल्ला खाँ ने अस्सी वर्ष के हो जाने के बावजूद हमेशा पाँचो वक्त वाली नमाज में शहनाई के सच्चे सुर को पाने की प्रार्थना करते रहे| मुहर्रम के दसों दिन बिस्मिल्ला खाँ अपने पूरे खानदान के साथ ना तो शहनाई बजाते थे और ना ही किसी कार्यक्रम में भाग लेते। आठवीं तारीख को वे शहनाई बजाते और दालमंडी से फातमान की आठ किलोमीटर की दूरी तक भीगी आँखों से नोहा बजाकर निकलते हुए सबकी आंखों को भिगो देते। मुहर्रम-ताजिया में श्रद्धा से शिरकत करते थे। बिस्मिल्ला खाँ जी काशी में विश्वनाथ और बालाजी के प्रति भी अपार श्रद्धा रखते हुए वहाँ शहनाई बजाते थे। काशी से बाहर होने पर थोड़ी देर काशी के मंदिरों की ओर मुँह करके शहनाई बजाकर सफलता की कामना करते थे। इस तरह बिस्मिल्ला खाँ जी मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।

(ख) बिस्मिल्ला खाँ जी एक सच्चे इंसान थे। बिस्मिल्ला खाँ जी काशी में रहते हुए भी काशी की उन सभी परंपराओं का निर्वाह करते थे जो वहाँ प्रचलित थीं, चाहे वे किसी भी संप्रदाय की रही हों। वे सभी परंपराएँ उनके जीवन का अंग बन चुकी थीं। वे धर्मों से अधिक मानवता को महत्व देते थे। हिन्दू तथा मुस्लिम वे दोनों का ही सम्मान करते थे। वे जिस प्रकार श्रद्धा और आस्था से मुहर्रम और ताजिया के समय मातम वाली शहनाई की धुन बजाते थे, उसी श्रद्धा से बालाजी, विश्वनाथ के मंदिरों में शहनाई बजाया करते थे। वे बनावटीपन पर विश्वास नहीं रखते थे। बिस्मिल्ला खाँ भारतरत्न जैसा सर्वोच्च सम्मान पाकर भी साधारण जीवन व्यतीत करते थे। भारतरत्न से सम्मानित होने पर भी उन्हें घमंड नहीं था। वे सामान्य और सरल जीवन जीने वाले, सबका सम्मान करने वाले, सच्चे अर्थों में इंसान थे।



Question 7.

बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?


Answer:

बिस्मिल्ला खाँ जब सिर्फ़ चार साल के थे तब छुपकर अपने नानाजी को शहनाई बजाते हुए सुनते थे। रियाज़ के बाद जब उनके नानाजी उठकर चले जाते थे तब अपनी नाना वाली शहनाई ढूँढते थे और उन्हीं की तरह शहनाई बजाने का प्रयास करते। बिस्मिल्ला खाँ के दोनों मामा सादिक हुसैन और अलीबख्य शहनाई वादक थे तब बिस्मिल्ला खाँ धड़ से एक पत्थर जमीन में मारा करते थे। इस प्रकार उन्होंने संगीत में दाद देना सीखा। उनसे ही उन्हें शहनाई बजाने की प्रेरणा मिली और शहनाई बजाने में रुचि लेने लगे। वे मंदिर उस रास्ते से जाते थे जिस रस्ते पर रसूलन और बतूलनबाई का घर पड़ता था ताकि वे उनका रियाज सुन सके। उनके द्वारा गाई गई टप्पे, ठुमरी, दादरा आदि को सुनकर उनके मन में संगीत के प्रति रुचि उत्पन्न हुई। बिस्मिल्ला खाँ जब कुलसुम को कलकलाते देशी घी की कढ़ाई में छन्न से उठने वाली आवाज में संगीत के सारे आरोह-अवरोह दिखाई देते थे। इन व्यक्तियों एवं घटनाओं ने बिस्मिल्ला खां की संगीत साधना को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई|



Question 8.

बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?


Answer:

भारत रत्न से सम्मानित होने पर भी बिस्मिल्ला खाँ के जीवन की सहजता और सरलता में कोई अंतर नहीं आया। भारत रत्न की उपाधि मिलने के बाद भी उनमें घमंड कभी नहीं आया। वे कृत्रिमता से कोसों दूर थे। बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म के प्रति संपूर्ण समर्पित थे और अपने नियम के अनुसार वे सच्चे मुसलमान की तरह पाँचों वक्त की नमाज अदा करते थे मुस्लिम होने के बाद भी उन्होंने हिंदु धर्म का सम्मान किया तथा हिंदु-मुस्लिम एकता को कायम रखा तथा ईश्वर के प्रति उनके मन में अगाध भक्ति थी। बाबा विश्वनाथ के मंदिर और बालाजी के मंदिर में शहनाई बजाया करते थे। बिस्मिल्ला खाँ- मंदिर में रियाज के लिए जाते समय अपने प्रिय रास्ते से ही जाते थे जिसमें उनकी प्रेरणास्त्रेत रसूलन और बतूलनबाई का घर पडता था। इस प्रकार धुन के पक्के इरादों ने उन्हें शहनाई वादन में सर्वोपरि बना दिया। गंगा को श्रद्धा से गंगा मैया पुकारते थे। शहनाई वादक के रूप में इतिहास के सर्वोपरि शहनाई वादक रहे, फिर भी अपने को अपूर्ण मानते थे। वे अपनी हर दुआ में, सुर में तासीर पैदा करने की खुदा से प्रार्थना करते थे। काशी के प्रति उनकी अपार श्रद्धा तथा भक्ति थी। बिस्मिल्ला खाँ का शहनाई वादक के रूप में सर्वोपरि स्थान पाने के बाद भी अस्सी वर्ष की उम्र तक अर्थात् जीवन-पर्यंत रियाज चलता रहा। इस प्रकार यह उनके अदम्य उत्साह प्रतीक रहा।



Question 9.

मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।


Answer:

बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म के प्रति संपूर्ण समर्पित थे। अपने मजहब की परंपराओं के प्रति शालीन और सजग थे। अपने नियम के अनुसार वे सच्चे मुसलमान की तरह पाँचों वक्त की नमाज अदा करते थे मुहर्रम पर्व के साथ बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई का सबंध बहुत गहरा है। मुहर्रम के महीने में शिया मुसलमान शोक मनाते जिसमें शिया मुसलमान हजरत इमाम हुसैन और उनके वंशजों के प्रति अजादारी मानते हैं। इन दिनों कोई राग-रागिनी नहीं बजाई जाती थी। इसलिए पूरे दस दिनों तक उनके खानदान का कोई व्यक्ति न तो मुहर्रम के दिनों में शहनाई बजाता था और न ही संगीत के किसी कार्यक्रम में भाग लेते थे। आठवीं तारीख उनके लिए खास महत्व की होती थी। आठवें दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते और दालमंड़ी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते हुए जाते थे। उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों की शहादत में नम रहती थीं।



Question 10.

बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।


Answer:

बिस्मिल्ला खाँ भारत के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक माने जाते थे क्योंकि वे अपनी शहनाई कला के प्रति पूर्णतया समर्पित थे। उन्होंने जीवनभर संगीत को संपूर्णता, एकाधिकार व सच्चे मन से सीखने की इच्छा को अपने अंदर जिंदा रखा। उन्होंने अस्सी वर्ष के होने तक हमेशा पाँचो वक्त वाली नमाज में शहनाई के सच्चे सुर को पाने की दुआ करते थे।r वे नमाज के बाद सजदे में यही गिड़गिड़ाते थे- मेरे मालिक एक सुर वख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर दे कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ। खाँ साहब ने कभी भी धन-दौलत को पाने की इच्छा नहीं की बल्कि उन्होंने संगीत को ही सर्वश्रेष्ठ माना। वे अपने सुरों को पूर्ण नहीं मानते थे इसलिए हमेशा उनका यही प्रयास रहता था कि सुर में और अधिक प्रभाव हो इस कारण सुर को और सुधारने के लिए प्रयास करते थे और घंटों रियाज करके अपनी कला को सुधारने में लगे रहते थे। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि वे अपनी कला के अनन्य उपासक थे।



Question 11.

निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए-

(क) यह जरूर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।

(ख) रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है।

(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।

(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ हीह उन पर मेहरबान होगा।

(ड़) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।

(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।


Answer:

(क) उपवाक्य- शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।

भेद- संज्ञा उपवाक्य।


(ख) उपवाक्य- जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है।


भेद- विशेषण उपवाक्य।


(ग) उपवाक्य- जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।


भेद- विशेषण उपवाक्य


(घ) उपवाक्य- कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।


भेद- संज्ञा उपवाक्य।


(ड़) उपवाक्य- जिसकी गमक उसी में समाई है।


भेद- विशेषण उपवाक्य


(च) उपवाक्य- पूरे अस्सी वर्ष उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।


भेद- संज्ञा उपवाक्य।



Question 12.

निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए-

(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।

(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।

(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।

(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।


Answer:

(क) यह ऐसी बालसुलभ हँसी है जिसमें कई यादें बंद हैं।

(ख) काशी में जो संगीत समारोह आयोजन किए जाते हैं उनकी एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।


(ग) धत्! पगली ई जो भारतरत्न हमें मिला है वह शहनाई पर मिला है, लुंगिया पर नहीं।


(घ) काशी का वह नायाब हीरा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा है।