लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
लेखक को पास में ही जाना था इसलिए उन्होंने ट्रेन का सेकंड क्लास का टिकट लिया। लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ गए। एक र्बथ पर लखनऊ की नबाबी नस्ल के एक सफ़ेदपोश सज्जन सुबदीहा से पालथी मारकर बैठे थे। सज्जन ने लेखक के आने पर कोई उत्साह नहीं दिखाया। लेखक का अचानक चढ़ जाना उन्हें अच्छा नहीं लगा। उन्हें एकांतवास में बाधा का अनुभव होने लगा। लेखक को लगा शायद नवाब ने सेकंड क्लास का टिकट इसलिए लिया है ताकि वे अकेले यात्रा कर सकें परंतु अब उन्हें ये बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। नवाब साहब खिड़की से बाहर देख रहे थे परंतु लगातार कनखियों से लेखक की ओर देख रहे थे। वे आमने सामने होकर भी खिड़की से बाहर झाँकते रहे और लेखक को न देखने का नाटकीय प्रदर्शन करते रहे। उन्होंने लेखक से मिलने तथा बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इस प्रकार लेखक को नवाब साहब के इन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं।
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
नवाब साहब अपनी नवाबी शान-शौकत को दिखाने की आदत रखते थे। वे अपनी हरकत से ठाट-बाट का प्रदर्शन करने में लगे थे। अचानक ही नवाब साहब ने लेखक को सम्बोधित करते हुए खीरे का लुत्फ़ उठाने को कहा परंतु लेखक ने शुक्रिया करते हुए मना कर दिया। नवाब ने बहुत ढंग से खीरे को धोकर छीला, काटा और उसमे जीरा, नमक-मिर्च बुरककर तौलिये पर सजाते हुए फिर वापस लेखक को खाने के लिए कहा किंतु एक बार मना कर चुके थे इसलिए आत्मसम्मान बनाए रखने के लिए दूसरी बार पेट खराब होने का बहाना बताया। लेखक ने मन ही मन सोचा कि साहब रईस बनते हैं लेकिन लोगों की नजर से बच सकने के ख्याल में अपनी असलियत पर बन आए हैं। नवाब साहब खीरे की एक फाँक को उठाकर होंठों तक ले गए, सूँघा और मुंह में आये पानी का घूँट गले से उतर गया तब नवाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। इस प्रकार यह सब नवाब साहब के अमीरी दिखावे का स्वभाव, दंभ, अंहकार, गर्व, अभिमान, दर्प, घमंड आदि की ओर संकेत करता है।
बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
अपने इस विचार के द्वारा यशपाल ने नई कहानी के दौर के लेखकों पर व्यंगय किया है। मेरे विचार से बिना विचार, घटना और पात्रों के कोई लेखक कहानी नहीं गढ़ सकता। यदि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी लिखी जा सकती हैं तो उस कहानी में वह प्रभाव नहीं होगा, जो घटनाओं और पात्रों पर आधारित विचारपूर्ण कहानियों में होता है। उद्देश्य और घटना के साथ विचार भी होना चाहिए, तभी कहानी पूर्ण होती है। उस कहानी का पाठक वैसा ही महसूस करेगा जैसे खीरे को खाए बिना उसे सूँघकर ही छोड़ दिया जाए। कहानी किसी घटना का ऐसा वर्णन है जो किसी विशेष कारण की ओर संकेत करती है। घटना कैसे घटी, उसके क्या कारण थे, उसका क्या परिणाम हुआ। यह सब जानने की जिज्ञासा मन में बनी रहती है और घटना बिना कारण के नहीं होती है। इस प्रकार उस कहानी में कल्पना तत्व की ही प्रधानता रहेगी, उसमे यथार्थ का पुट नहीं होगा। कोई घटना या कथावस्तु कहानी में वास्तविकता प्रदान करने के साथ-साथ उसे आगे भी बढ़ाता है। इसीलिए यह दोनों एक अच्छे कहानी के लिए आवश्यक होता है। अतः लेखक का मानना है कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी नहीं लिखी जा सकती है।
आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?
अमीरों के मन की गरीबी।
झूठी नवाबी शान।
नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
नवाब साहब के सामने दो ताजे चिकने खीरे तौलिये पर रखे थे। नवाब साहब सामने बैठे लेखक को देख अपने संकोच को दूर करते हुए कुछ नए अंदाज में खीरा काटने की प्रक्रिया अपनाते हैं। बर्थ के नीचे रखे पानी से भरे लोटे को लेकर खिड़की से बाहर खीरों को अच्छी तरह धोते तथा तौलिये से पोंछते है। जेब से चाकू निकालकर खीरे के सिर को काटकर और गोदकर झाग निकालते हैं। खीरों को छीलकर फाँके बनाते हैं। कटी हुई फाँकों पर जीरा, नमक और काली मिर्च को बुरकते हैं। नबाब साहब खीरे की एक फाँक को उठाकर होठों तक ले जाते हैं, उसको सूँघते है। खीरे के स्वाद के आनंद में उनकी पलकें मूँद जाती है। मुँह में पानी भर आता है।
किन-किन चीजों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयार करते हैं?
हम फलों का रसास्वादन करने से पहले सभी फलों को अच्छे से पानी से धो कर कपड़े से पोंछ देते हैं। फिर उन फलों की फाँके काट कर उस पर नमक, र्मिच डालकर अच्छे से थाली में सजाकर फिर उसका आनंद लेते हैं।
खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।
एक बार लखनऊ के एक नवाब मसनद के सहारे बैठकर शतरंज खेल रहे थे। तभी उन्हें खबर मिली की अंग्रेजों की सेना ने आक्रमण कर दिया है, सब तहस महस हो रहा है। बार बार उनको यह बताया जा रहा था। परंतु इसके बारे में चिंतित होने और इसे रोकने के बजाए नवाब साहब ने अपने अर्दली को आवाज लगाई ताकि वह आकर उन्हें जूते पहना दे। लेकिन अर्दली तो अपनी जान बचाकर भाग चुका था। फिर क्या था, नवाब साहब वहीं बैठे रहे। एक नवाब भला अपने हाथों से जूते कैसे पहन सकता था। अंग्रेजों के सैनिक आये और नवाब साहब को पकड़कर ले गए। यह यही दर्शाता है कि नवाबों में अकड थी क्योंकि वो राजशौंक से रहते थे परंतु अपनी प्रजा का ध्यान और प्रजा को सुरक्षित रखना भी उनकी जिम्मेदारी थी।
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए।
सनक सवार हो जाना अर्थात् जनून छा जाना अर्थात् धुन का पक्का होना। यदि किसी व्यक्ति में लगन, मेहनत तथा ईमानदारी से काम करने की सनक हो तो इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हमने ऐसे कई वैज्ञानिकों, महापुरुषों तथा ज्ञानी व्यक्तियों के बारे में सुना है जो दिन रात मेहनत करने पर सफल हुए हैं। सवित्रीबाई फुले, रानी लक्ष्मी बाईं, कल्पना चावला आदी महिलाओं ने अपनी सनक को सकारात्मक रूप से लेने के कारण ही इतिहास में अपना नाम दर्ज किया है| ऐसी सापेक्ष सनक सकारात्मक होती है। उसके परिणाम अच्छे निकलते हैं।
सावित्रीबाई फुले के कारण ही आज महिलाएं शिक्षा प्राप्त कर सकती हैं। जब उस दौर में महिलाओं की शिक्षा पर पाबंदी थी उस दौर में भी सवित्रीबाई फुले ने संघर्ष करते हुए, लोगों के ताने तथा समाज का दबाव सहते हुए अपनी सनक को अपनी शक्ति बना कर सफलता प्राप्त की और महिलाओं के जीवन को मंगलमय बना दिया।
निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए-
(क) एक सप़फ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
(ग) खाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
(घ) अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
(ड़) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा।
(छ) रवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
(ज) जेब से चाकू निकाला।
(क) बैठे = क्रिया
(अकर्मक क्रिया)
(ख) दिखाया = क्रिया
(सकर्मक क्रिया)
(ग) आदत = क्रिया
(सकर्मक क्रिया)
(घ) खरीदे= क्रिया
(सकर्मक क्रिया)
(ड़) 1. काटे = सकर्मक क्रिया
2. गोदकर=पूर्वकालिक क्रिया
3. निकाला = सकर्मक क्रिया
(च) देखा = क्रिया
(सकर्मक क्रिया)
(छ) थककर लेट गए = क्रिया
(अकर्मक क्रिया, संयुक्त क्रिया)
(ज) निकाला = क्रिया
(सकर्मक क्रिया)