सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?
इस पाठ के अन्तर्गत हम पाते हैं कि सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन कहते थे। इसका कारण उसके रंग-रूप में देशप्रेम की भावना का भरा होना था। हालांकि वह शरीर से दिव्यांग था और उसके पास संसाधनों का भी अभाव था। ऐसा होने के बावजूद भी उसमें देशभक्ति की भावना अपने पूर्ण रूप में मौजूद थी। ऐसा उसके क्रियाकलापों से प्रदर्शित होता है।
हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा-
(क) हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?
(ख) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है?
(ग) हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे?
हालदार साहब पानवाले द्वारा पहले ही यह बात जान चुके थे कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति पर नियमित रूप से चश्मा लगाने वाले कैप्टन की मृत्यु हो चुकी है। वे अब यह सोचकर कि कैप्टन की मृत्यु के बाद किसी ने नेताजी की मूर्ति पर चश्मा नहीं लगाया होगा। इस प्रकार मन में विचार करके उन्होंने ड्राइवर को चौराहे पर पहुंचने से पहले गाड़ी रोकने से मना किया था। (क) हालदार साहब पहले से ही मन में कुछ विचार कर पूर्वाग्रह से ग्रसित हो रहे थे। वे यह सोच रहे थे कि आखिर कौन ऐसा होगा जो अब कैप्टन की मृत्यु के बाद नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाने का काम जारी रखेगा। यानि अब किसे इतनी फुर्सत होगी कि वह अपने दैनिक जीवनचर्या में से थोड़ा सा समय निकालकर इस ओर भी ध्यान दे। उन्हें यह बिल्कुल असंभव सा लग रहा था कि किसी के पास नियमित रुप से या कभी कभार या सिर्फ एक बार के लिये भी नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाने लायक समय होगा। हालदार साहब यह सब सोचकर पहले मायूस हो गये थे।
(ख) हालांकि चौराहे पर पहुंचने के बाद हालदार साहब ने नेताजी की मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा लगा हुआ पाया। यह दृश्य देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ और उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। मूर्ति पर सरकंडे का लगा हुआ चश्मा यह संकेत देता है कि हो ना हो यह किसी बच्चे का काम ही होगा। यह बात हमारे मन में ढेर सारी उम्मीदें जगा जाती हैं। पहला तो यह कि हमारे देश के बच्चों में देशभक्ति की काफी भावना मौजूद है। खेल खेल में सरकंडे का ही सही उन्होंने नेताजी की मूर्ति पर चश्मा देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होकर ही लगाया। दूसरा यह कि हममें से अधिकांश लोग हालांकि नून-तेल-लकङी के चक्कर में पड़कर देशभक्ति के प्रदर्शन को एक बेकार की चीज मानते हों, हमारे बच्चों में देशभक्ति की भावना अपने मूल रूप में मौजूद है।
(ग) हालदार साहब पहले यह सोचकर मायूस हो रहे थे कि कस्बे के चौराहे पर बिना चश्मेवाली सुभाष की मूर्ति होगी। मूर्ति पर चश्मा लगाने वाला कैप्टन मर चुका है। अब सुभाष की मूर्ति पर चश्मा लगाने वाला कोई ना होगा। अब मूर्ति की आँखों पर चश्मा ना होगा। उन्होंने जब नेताजी की आंखों पर सरकंडे का चश्मा देखा तब वे यह सोचने पर मजबूर हुए कि यह तो किसी बच्चे का काम लगता है। यह कि हमारे देश के छोटे-छोटे बच्चे जिन्हें अभी बड़ा होना बांकी है वे देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत है। यह भी कि जिस उम्र में लोगों को देश की क्या अपनी सुरक्षा की भी चिन्ता नहीं होती है। इस उम्र में ये बच्चे अपने देश के मान-सम्मान, सुरक्षा की रक्षा के प्रतीक सुभाषचंद्र बोस जैसे नेता के सम्मान के प्रति इतने चिन्तित हैं। हालदार साहब बच्चों की इन बातों को सोचकर भावुक हो उठे।
आशय स्पष्ट कीजिए-
‘‘बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-जिंदगी सब कुछ होम देने वालों पर भी हँसती है और पने लिए बिकने के मौके ढूंढ़ती है।’’
उक्त उद्धरण लेखक स्वयंप्रकाश की रचना ‘नेताजी का चश्मा’ से ली गई है। लेखक उक्त उक्ति इनकी इस रचना के एक पात्र हालदार साहब के मुंह से कहलवाते हैं। हालदार साहब का इस बारे में बार-बार सोचना है कि भारत में कई लोग ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता की खातिर अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। हमारे देश के इन वीर सपूतों ने इस हेतु अपने जान की परवाह भी नहीं की। देश की स्वतंत्रता के लिए उनमें दीवानगी इस हद तक थी कि उन्होंने इस हेतु अपने निजी सुख को परे रखते हुए देश की आजादी को अपना एकमात्र लक्ष्य माना और इस हेतु काफी कष्ट सहे। हालदार साहब स्वतंत्र भारत में लोगों के मन में इन स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति सम्मान का अभाव देखते हैं। ये लोग स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग के बारे में जरा भी नहीं सोचते हैं उल्टे उनकी देशभक्ति की भावना को फालतू की चीज समझते हैं। यहां तक कि ये लोग कुछ पाने की खातिर अपने देश के मान-सम्मान की बलि चढानी हो तो ये उस हेतु भी तैयार रहते हैं। ये लोग इतने स्वार्थी हो गये हैं कि इनकी नजरों में भौतिक सुख की प्राप्ति के आगे इनका देश भी मायने नहीं रखता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण वे कैप्टन की मृत्यु के बाद नेताजी की मूर्ति की बच्चों को छोड़कर किसी अन्य के द्वारा सुध नहीं लिये जाने पर भी सोचते हैं।
पानवाले का एक रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए।
स्वयंप्रकाश की इस रचना में कस्बे के चौराहे पर स्थित पानवाला एक काफी खुशमिजाज किस्म का व्यक्ति है। उसकी शारिरिक आकृति का रेखाचित्र खींचने पर हम पाते हैं कि वह स्थूल या कहें मोटे कदकाठी का स्वामी है। उसके शरीर का रंग काला है। उसके दांत पान खा खाकर अपनी स्वाभाविक चमक खो चुके हैं। वह गंभीर से गंभीर बात को हंसी में उड़ा जाता है। जैसे मूर्तिकार के नेताजी की मूर्ति पर चश्मा नहीं लगाने के बारे में हालदार साहब के पूछने पर उसका कहना-मास्टर भूल गया होगा से हमें ज्ञात होता है। या फिर कैप्टन को उसका प्यार से लंगड़ा कहने में जिस प्रकार हम पाते हैं। हंसी आने से पूर्व उसकी तोंद थिरकने लगती है और उसके दांत खुल कर सामने आ जाते हैं जिससे उसकी संपूर्ण काया अपनी पूर्णता प्राप्त कर लेती है। वैसे तो वह हंसमुख स्वभाव का है पर उसका अपना रिश्ता जिससे है उसके नुकसान पर वह मर्माहत हो उठता है और तब उसकी आंखों से आंसू निकल आते हैं। जैसे कैप्टन की मृत्यु पर हमें पानवाले में देखने को मिलता है।
‘‘वो लँगड़ा क्या जाएगा फौज में। पागल है पागल!’’
कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए|
प्रस्तुत उक्ति लेखक स्वयंप्रकाश ने पानवाले के मुंह से कहलवाई है। हालदार साहब जब चश्मावाले के बारे में यह जानकर कि लोग उसे कैप्टन कहते हैं वो तब पानवाले से इस बारे में पूछते हैं। उन्हें चश्मावाले के नाम और उसके काम में कुछ विरोधाभास लग रहा था। इसी कारणवश उन्होंने पानवाले से इस बारे में पता करने के उद्देश्य से उससे ऐसा पूछा। और पानवाला तपाक से बोल पङा- “वो लंगड़ा क्या जाएगा फौज में, पागल है पागल।“ पानवाला भी अपनी समझ से ऐसा कह रहा था। उसे लग रहा था कि लोग जो अर्थोपार्जन कर यानि अपने रोजगार से सिर्फ अपनी घर-गृहस्थी पर ध्यान दें वैसे लोग ही सामान्य होते हैं ना कि वैसे लोग जो मन में देशभक्ति की भावना रखते हैं और उसी भावना में डूबे रहते हैं। वास्तव में पानवाला कैप्टन चश्मावाले की देशभक्ति की भावना को गहराई से नहीं समझ पा रहा था और वह कैप्टन की शारिरिक कमजोरी को भी उसकी स्थिति की गहराई में न जाकर उसकी वस्तुस्थिति को ना समझ पाने के कारण ही उसे लंगड़ा संबोधित कर रहा था। वह वास्तव में अधिक पढ़ा लिखा ना होने के कारण भी ऐसा कह रहा था। अधिक पढ़ा लिखा होने पर मनुष्य समझदार तो हो ही जाता है जिसकी कमी पानवाले में दिख रही थी और इसिलिए वह चश्मावाले के बारे में कटु सत्य कह रहा था।
निम्नलिखित वाक्य पात्रों की कौन-सी विशेषता की ओर संकेत करते हैं-
(क) हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रुकते और नेताजी को निहारते।
(ख) पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुँह का पान नीचे थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँखे पोंछता हुआ बोला- साहब! कैप्टन मर गया।
(ग) कैप्टन बार-बार मूर्ति पर चश्मा लगा देता था।
(क) लेखक स्वयंप्रकाश की इस रचना के एक पात्र हालदार साहब कस्बे के चौराहे पर हमेशा रूकते और नेताजी की मूर्ति को निहारते। हमें हालदार साहब के बारे में बताया गया है कि वो स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति सम्मान की भावना रखते थे। तभी तो वो नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति पर मूर्तिकार द्वारा चश्मा लगाना भूल जाने पर इस बारे में पानवाले से पूछताछ करते हैं। वे कैप्टन द्वारा नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाने पर खुश होते हैं और कैप्टन के नहीं रहने पर बच्चों द्वारा चश्मा लगाने पर तो वे काफी भावविभोर हो जाते हैं। इस प्रकार हालदार साहब नेताजी की मूर्ति को बार-बार निहार कर अपनी देशभक्ति की भावना का ही परिचय देते हैं।
(ख) कैप्टन के मरने पर पानवाले द्वारा इस प्रकार का भाव व्यक्त किया जाना हमें उसके कैप्टन के प्रति अगाध प्रेम को ही दर्शाता है। पानवाले ने भले ही कैप्टन के जीवनकाल में उसकी हंसी ही उड़ाई हो और उसे मजाक का पात्र बनाया। यहाँ तक कि उसने कैप्टन को लंगड़ा बताया। इन सब के बावजूद कैप्टन के मरने के बाद पानवाले की आंखों में आंसू आने से हमें साफ पता चलता है कि वह अन्दर ही अन्दर कैप्टन से अपनत्व की भावना रखता था।
(ग) कैप्टन बार-बार नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगा देता था। ऐसा करने का कारण उसका अपने अन्दर देशभक्ति की भावना के होने से है। वह वास्तव में हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों खासकर नेताजी सुभाषचंद्र बोस के प्रति अपने मन में सम्मान की भावना रखता था। इन्हीं भावनाओं के तहत कैप्टन नेताजी की मूर्ति पर बार-बार चश्मा लगा देता था।
जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात देखा नहीं था तब तक उनके मानस पटल पर उसका कौन-सा चित्र रहा होगा, अपनी कल्पना से लिखिए
हालदार साहब वास्तव में नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाने वाले के बारे में जानने को उत्सुक थे। जब उन्होंने पानवाले से जाना कि कैप्टन मूर्ति पर चश्मा लगाता है तब उनके मानसपटल पर चश्मा लगाने वाले के बारे में अनोखा चित्र उभरा होगा। उन्होंने सोचा होगा कि कैप्टन कोई फौजी होगा। इसीलिये तो उसके मन में नेताजी के प्रति इतनी श्रद्धा है कि वह रोज आकर उनकी मूर्ति पर चश्मा लगा जाता है। हालदार साहब ने फिर यह भी सोचा होगा कि हो ना हो कैप्टन अवश्य ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस के आजाद हिन्द फौज का साथी होगा और इसीलिये उसमें नेताजी और देश के प्रति प्रेम होगा। जिसे कि वह मूर्तिकार द्वारा नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाना भूल जाने के कारण उसे वैसा ही नहीं छोड़ता है बल्कि उनकी मूर्ति की आंखों पर चश्मा लगा देता है।
कस्बों, शहरों, महानगरों के चौराहों पर किसी न किसी क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ति लगाने का प्रचलन-सा हो गया है-
(क) इस तरह की मूर्ति लगाने के क्या उद्देश्य हो सकते हैं?
(ख) आप अपने इलाके के चौराहे पर किस व्यक्ति की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे और क्यों?
(ग) उस मूर्ति के प्रति आपके एवं दूसरे लोगों के क्या उत्तरदायित्व होने चाहिए?
(क) इस तरह की मूर्ति लगाने का पहला उद्देश्य तो यह हो सकता है कि लोग इन महापुरुषों की स्मृतियों को अपने मन में ताजा बनाये रखें। चूंकि लोग प्रायः रोज इन चौरहों से होकर गुजरते हैं इसलिए मूर्ति का चौराहे पर अवस्थित होने से उनकी एक बार भी मूर्ति की ओर नजर पङने से उनके स्मरण में वो महापुरुष आ जाएंगे। दूसरा उद्देश्य जो कि मूख्य उद्देश्य है और वह है मूर्ति के माध्यम से उन महापुरुष के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में आम जनता को जानकारी होना। उनकी इन स्थानों के चौराहे पर मूर्ति लगाने से इस मुख्य उद्देश्य की भी पूर्ति हो सकती है।
(ख) मैं अपने इलाके के चौराहे पर भगवान बुद्ध की मूर्ति स्थापित करवाना चाहूंगा। हम सभी जानते हैं भगवान बुद्ध मध्यम मार्ग को सर्वश्रेष्ठ मार्ग मानते थे। इसके अन्तर्गत हमें विपरीत परिस्थितियों में भी शान्त बने रहने की प्रेरणा मिलती है। अतः मैं इस मार्ग को जीवन जीने हेतु सर्वथा उपयुक्त मार्ग मानता हूँ और इसके सभी के लिए अनुकरणीय बनाने हेतु मैं बुद्ध की मूर्ति अपने इलाके के चौराहे पर स्थापित करवाना चाहता हूं।
(ग) भगवान बुद्ध की इस मूर्ति के प्रति मेरा पहला दायित्व तो इसकी देखभाल और सुरक्षा हेतु हमारे कदम पर होना चाहिए। मूर्ति सम्मानजनक स्थिति में रहे यह भी मेरे दायित्वों में शामिल है। साथ ही मैं प्रत्येक वर्ष कम से कम बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर इस महापुरुष के सम्मान में कार्यक्रम कर लोगों के बीच जागरुकता फैलाना चाहता हूं।
सीमा पर तैनात फौजी ही देश-प्रेम का परिचय नहीं देते। हम सभी अपने दैनिक कार्यों में किसी न किसी रूप में देश-प्रेम प्रकट करते हैं; जैसे- सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुँचाना, पर्यावरण संरक्षण आदि। अपने जीवन-जगत से जुड़े ऐसे और कार्यों का उल्लेख कीजिए और उन पर अमल भी कीजिए।
हम सभी अपने दैनिक कार्यों में कुछ ना कुछ कर इसे देशप्रेम के उदाहरण के रूप में प्रदर्शित कर सकते हैं। एक कहावत ‘ जहाँ चाह वहाँ राह’ का अर्थ हम सब जानते हैं। यह बात देशप्रेम के मामले में भी लागू होती है। कहने का अर्थ है हमें देशप्रेम की चाह रखने पर हमें उसके प्रदर्शन के मौके अपने आप मिल जाएंगे। जैसे हम वर्ष के तीन रास्ट्रीय पर्व अर्थात गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और महात्मा गांधी के जन्मदिन अर्थात अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के मौके पर हम इन त्यौहारों के रूप में मनाकर अपनी देशप्रेम की भावना का प्रदर्शन कर सकते हैं। इन अवसरों पर हम जहाँ और जिस स्थिति में हों हम अपने सामर्थ्य से इन दिवसों को एक अविस्मरणीय घटना के रुप में याद करने लायक बना सकते हैं। इसके अलावा हम ऐसी हर चुनौती जिसका सामना हमें अपने देश के विकास होने के क्रम में करना पड़े उसे स्वीकार कर व्यक्तिगत और सामाजिक ढंग से उस चुनौती को स्वीकार कर अपनी देशभक्ति का परिचय दे सकते हैं। हमें अपने देश में मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत अपना सहयोग देश को आगे बढाने में सरकार को देना होगा। सिर्फ वोट देकर सारी बातों को अगले 5 सालों तक भूल जाने वाले रवैये से हमें कुछ हासिल नहीं होने वाला है। चाहे वह चुनौती स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रदूषण, पर्यावरण या अन्य चीजों से जुड़ी हो या शिक्षा या अन्य क्षेत्र की बात हो सबमें हम अपनी देशभक्ति इन क्षेत्रों के विकास में एक भागीदार हो कर ही प्रदर्शित कर सकते हैं चाहे वह वेट एण्ड वाच(प्रतीक्षा करो और स्थिति पर नजर बनाये रखो) वाली भागीदारी ही क्यों न हो।
निम्नलिखित पंक्तियों में स्थानीय बोली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, आप इन पंक्तियों को मानक हिंदी में लिखिए-
कोई गिराक आ गया समझो। उसको चौड़े चौखट चाहिए। तो कैप्टन किदर से लाएगा? तो उसको मूर्तिवाला दे दिया। उदर दूसरा बिठा दिया।
लेखक ने प्रस्तुत उक्ति पानवाले के मुंह से कहलवाई है। वास्तव में हालदार साहब कैप्टन द्वारा नेताजी की मूर्ति पर अलग-अलग चश्मा लगाने का कारण जानने के बारे में उत्सुक थे। उन्होंने इस बारे में पानवाले से पूछा। तब पानवाले ने हालदार साहब को जो बातें उत्तर के रूप में बताईं वही प्रस्तुत उक्ति बनकर हमारे सामने आया है। पानवाले का उत्तर है-आप समझिये। चश्मा के दुकानदार कैप्टन के पास कोई चश्मा के मोटे फ्रेम की चाह रखने वाला ग्राहक आ गया होगा और वह फ्रेम कैप्टन के नेताजी की मूर्ति पर पहले ही अच्छा समझकर लगा दिया होगा। अब उसे ग्राहक की मांग पर उसे उसकी पसंद की मोटी फ्रेम वाला चश्मा भी उपलब्ध कराना था। अब वह चश्मा कहां से लाता? इसीलिये कैप्टन ने मूर्ति वाला मोटा फ्रेम उतारकर उस ग्राहक को दे दिया और नेताजी की मूर्ति पर उसने अपनी पसंद का दूसरा चश्मा लगा दिया।
‘भई खूब! क्या आइडिया है।’ इस वाक्य को ध्यान में रखते हुए बताइए कि एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों के आने से क्या लाभ होते हैं?
‘भई खूब! क्या आइडिया है।‘ वाक्य दूसरी भाषाओं से लिये गये शब्दों से भरा पङा है। हालांकि अर्थ समझाने में ये प्रस्तुत वाक्य कहीं से भी हिन्दी भाषा की कमी को खलने नहीं देता हैं बल्कि इस वाक्य में प्रयोग किये गये उर्दू और अंग्रेजी के शब्द वाक्य के वास्तविक अर्थ को कहीं अधिक अच्छे ढंग से हमारे सामने व्यक्त करते हैं। वास्तव में एक भाषा के शब्द के दूसरी भाषा में आने से लाभ ही लाभ होते हैं। उदाहरण के तौर पर थैंक्यू कहने से अर्थ भी स्पष्ट होता है और यह हिन्दी में इसके लिए प्रयुक्त शब्द धन्यवाद से थैंक्यू शब्द कहीं अधिक व्यवहारिक लगता है । कई बार ऐसा होता है कि एक भाषा के शब्द के अर्थ दूसरी भाषा में प्रयुक्त शब्द के अर्थ से समझ में आते हैं। उदाहरण के तौर पर हमें त्रिपाद चालक का अर्थ समझने में शायद देर लगे और रिक्शावाला कहने से हम तुरंत अर्थ समझ जाते हैं। इसलिए एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्द लाभकारी ही होते हैं।
निम्नलिखित वाक्यों से निपात छाँटिए और उनसे नए वाक्य बनाइए-
(क) नगरपालिका थी तो कुछ न कुछ करती भी रहती थी।
(ख) किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा।
(ग) यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था।
(घ) हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए।
(ड़) दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरते रहे।
(क) तो, भी
1. मैं तो कल जाऊंगा।
2. मेरे साथ रमेश भी जाएगा।
3.कोई नहीं आए तो भी मैं जाऊंगा। (ख) ही
1. आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है।
2. मैं अपनी गलती का खुद ही जिम्मेदार हूँ।
(ग) तो
1. मैं तो अपनी गलती मान लूंगा।
2. वह तो कल आयेगा।
(घ) भी
1.वह भी मेरे साथ है।
2.यहां अच्छे लोग भी हैं।
3.आप भी ज्ञानी हैं।
(ड़) तक
1. मैं परसों तक आऊंगा।
2. महेश मेरे साथ पटना तक जाएगा।
निम्नलिखित वाक्यों को कर्मवाच्य में बदलिए-
(क) वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है।
(ख) पानवाला नया पान खा रहा था।
(ग) पानवाले ने साफ बता दिया था।
(घ) ड्राइवर ने जोर से ब्रेक मारे।
(ड़) नेताजी ने देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया।
(च) हालदार साहब ने चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया।
(क) उसके द्वारा अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चूने फ्रेमों में से एक नेताजी की मूर्ति पर फिट कर दिया जाता है।
(ख) पानवाले द्वारा नया पान खाया जा रहा था।
(ग) पानवाले द्वारा साफ़ बता दिया गया था।
(घ) ड्राइवर द्वारा जोर से ब्रेक मारा गया।
(ड़) नेता जी द्वारा देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया गया।
(च) हालदार साहब द्वारा चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया गया।
नीचे लिखे वाक्यों को भाववाच्य में बदलिए-
जैसे- अब चलते हैं। - अब चला जाए।
(क) माँ बैठ नहीं सकती।
(ख) मैं देख नहीं सकती।
(ग) चलो, अब सोते हैं।
(घ) माँ रो भी नहीं सकती।
(क) माँ से बैठा नहीं जाता।
(ख) मुझसे देखा नहीं जाता।
(ग) चलो, अब सोया जाए।
(घ) माँ से रोया भी नहीं जाता।
लेखक का अनुमान है कि नेताजी की मूर्ति बनाने का काम मजबूरी में ही स्थानीय कलाकार को दिया गया-
(क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के क्या भाव रहे होंगे?
(ख) हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों के काम को कैसे महत्व और प्रोत्साहन दे सकते हैं, लिखिए।
(क) मूर्तिकार एक स्थानीय व्यक्ति था। वह अपनी कला को पूर्णरूपेण मूर्ति के निर्माण में झोंक देना चाहता था। चाहे भले ही उसे मूर्ति बनाने का काम मजबूरी में सौंपा गया होगा। फिर भी वह स्थानीय मूर्तिकार मूर्ति बनाने में अपनी कला-कौशल के प्रदर्शन में पीछे नहीं रहना चाहता था। ऐसा वह अपने काम के प्रति दूसरों के मन में विश्वास पैदा करने के उद्देश्य से भी कर रहा था ताकि उसका रोजगार चल निकले।
(ख) हमें अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों को मान-सम्मान देना ही है। वे चूंकि कलाकार होने के कारण समाज में उंचा स्थान रखते हैं इसलिए हमें उनकी पूछ करनी ही होगी, उन्हें महत्व देना ही होगा। चूंकि कलाकार एक संवेदनशील प्राणी होता है इसलिए हमें उनका मनोबल बनाये रखने के लिये हमें उन्हें विभिन्न अवसरों पर और भिन्न स्तरों पर सम्मानित करना ही होगा। वास्तव में समाज कलाकार का ऋणी होता है और समाज का यह फर्ज बनता है कि वो कलाकार का ऋण चुकाए। इसीलिये समाज के एक अंग होने के कारण हमें कलाकार का ऋण उसे महत्व देकर और उसका सम्मान कर चुकाना ही होगा|
आपके विद्यालय में शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण विद्यार्थी हैं। उनके लिए विद्यालय परिसर और कक्षा-कक्ष में किस तरह के प्रावधान किए जाँए, प्रशासन को इस संदर्भ में पत्र द्वारा सुझाव दीजिए।
जिला शिक्षा अधिकारी
शिक्षा विभाग
समाहरणालय, भागलपुर।
विषय- विद्यालय में शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण विद्यर्थियों के हेतु सुव्यवस्था हेतु प्रार्थना-पत्र।
महोदय,
सविनय पूर्वक यह निवेदन है कि मेरे विद्यालय संत टेरेसा स्कूल, भागलपुर में ऐसे कई छात्र पढ़ते हैं, जिनमें पढने की दृढ लगन तो है पर वे दिव्यांग यानि अपने पैरों से काफी हद तक लाचार हैं। वे सामान्य विद्यार्थी की तरह ही शारिरिक मेहनत कर रोज विद्यालय आते हैं। दुर्भाग्य की बात है कि विद्यालय आने पर भी उन्हें सामान्य विद्यार्थियों की तरह ही समझा जाता है और उनकी राह को आसान बनाने के लिये स्कूल प्रशासन के पास संसाधनों का अभाव है।
अत: श्रीमान से सादर प्रार्थना है कि इन छात्रों के लिये उचित संसाधनों जैसे व्हील चेयर, उचित शौचालय व्यवस्था के साथ इनकी पढाई की निचले तल पर व्यवस्था के इंतजाम किये जाएँ ताकि ये अपना सारा ध्यान पढाई में लगा सकें।
आशा है आप इन विद्यार्थियों की तरफ से मेरी प्रार्थना सुनेंगे।
सधन्यवाद ।
भवदीय
मयंक शेखर
कक्षा 10
संत टेरेसा स्कूल,
अलीगंज,भागलपुर,बिहार।
पिन कोड-128005
कैप्टन फेरी लगाता था।
फेरीवाले हमारे दिन-प्रतिदिन की बहुत-सी जरूरतों को आसान बना देते हैं। फेरीवालों के योगदान व समस्याओं पर एक संपादकीय लेख तैयार कीजिए।
फेरीवाले कई प्रकार के सामान को अपनी छोटी सी गाड़ी में लादकर एक स्थान से दूसरे स्थान उन सामानों को बेचने के उद्देश्य से घूमते रहते हैं। ये अपने गले से सुरीली आवाज निकालकर संभावित ग्राहक का ध्यान अपनी ओर खींचने का प्रयास करते हैं। इनकी बोली-चाली और व्यवहार से लगता नहीं है कि ये अन्दर से कितने दुखी हैं। सर्वप्रथम तो हम जानें कि ये फेरीवाले सामान बेचने की जुगत में अपने घरों से दूर निकल जाते हैं। इनका कोई स्थाई ठिकाना नहीं होता है और इनमें से अधिकांश को सर्दी, गर्मी और बरसात के मौसम का सामना अपने सामान को बेचने के क्रम में करना पङता है। इनकी आमदनी अधिक नहीं होती है फिर भी इन्हें अपने ग्राहकों की फरमाइश उनके द्वार पर जाकर पूरी करनी पङती है और ऐसा करते समय वे ग्राहकों को नाराज करने का जोखिम नहीं मोल ले सकते हैं। इस प्रकार हमारे जीवन को सरल बनाने में फेरी वाले का बहुत योगदान है। और उनकी अपनी समस्याएं भी इस प्रकार काफी हैं।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के व्यक्ति और कृतित्व पर एक प्रोजेक्ट बनाइए।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस जीवन परिचय: सुभाषचंद्र बोस भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी रहे थे। उनका जन्म 23 जनवरी 1897 ई. को उड़ीसा के कटक में एक प्रसिद्ध वकील जानकी दास के घर में हुआ था। लोग उन्हें प्यार से नेताजी कहते थे। उन्होंने एंट्रेंस की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में नामांकन लिया। अपने स्वाभिमानी स्वभाव के कारण उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से पढाई कर आइसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण की। हालांकि अपनी देशप्रेम की भावना के कारण उन्होंने आइसीएस से त्यागपत्र दे दिया।
भारत में संघर्ष के दिन: नेताजी ने हमारे देश पर ब्रिटिश शासन से बहुत खफा थे। इसे प्रदर्शित करने हेतु उन्होंने प्रिन्स ऑफ वेल्स के भारत आगमन का विरोध किया, स्वराज दल की स्थापना की, बांग्ला भाषा में पत्र ‘बांगलार कथा’ और ‘फारवर्ड’ निकाले। 1938 और 1939 में वे कॉंग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हुए। हालांकि गांधीजी से मतभेद के चलते उन्होंने त्याग पत्र दे दिया और ‘फारवर्ड ब्लॉक’ पार्टी की स्थापना की। द्वितीय विश्वयुद्ध के विरोध स्वरूप उन्होंने आमरण अनशन किया, वे नजरबंद किये गये।
विदेश गमन और आजाद हिन्द फौज का गठन: हमारे देश की आजादी की योजना मन में रखकर 1941 ई. में नेताजी विदेश चले गये। हिटलर से मिलने के बाद उन्होंने सिंगापुर में जाकर आजाद हिंद फौज का गठन किया। लोगों में उत्साह भरने हेतु उन्होंने जय हिन्द,दिल्ली चलो,तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आजादी दूंगा नारा दिया।
अवसान: 18 अगस्त 1945 ई. में एक विमान दुर्घटना में नेताजी की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गयी। प्रमाणिक ढंग से उनकी मृत्यु का स्पस्टीकरण आजतक नहीं हो पाया है।
अपने घर के आस-पास देखिए और पता लगाइए कि नगरपालिका ने क्या-क्या काम करवाए हैं? हमारी भूमिका उसमें क्या हो सकती है?
मैं अपने घर के आसपास नगरपालिका द्वारा करवाये गये कई अच्छे कार्यों को देखता हूँ। किसी जमाने में मेरे घर के आसपास लोग अपने घरों के आगे या अपने पड़ोसी के घर के आगे कूड़ा फेंक दिया करते थे। अब हम सभी म्यूनिसिपैलिटी द्वारा लगाए गये कूड़ा बॉक्स में कूड़ा फेंकते हैं। हम कूड़ा फेंकने की प्रक्रिया का नियमपूर्वक पालन कर स्वच्छता के प्रति अपनी भूमिका को निभाना हितकर मानते हैं।
नगरपालिका ने मेरे घर के सामने पक्की सड़क का निर्माण भी कराया है। इससे आम आदमी और सवारी गाड़ी को अपने गंतव्य तक आसानी से पहुंचने में सुविधा होती है। पहले खरंजा वाली सङके थीं। चौक पर उभरा हुआ एक बङा सा अवरोधक था जिसे पार करने में लोगों और सवारी गाड़ियों को दिक्कत होती थी। अब पक्की सङक बन जाने पर हमें सुविधा होती है। हम इस सड़क के रखरखाव पर ध्यान देते हैं।
नगरपालिका ने हमारे घर से कुछ ही दूरी पर अस्पताल बनवाया है। ऐसा होने से हमारी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का समाधान पास में मिल जाने से हमें काफी सुविधा हो गयी है। हम अनावश्यक रूप से अस्पताल के संसाधनों का दुरुपयोग नहीं करते हैं।
नीचे दिए गए निबंध का अंश पढ़िए और समझिए कि गद्य की विविध विधाओं में एक ही भाव को अलग-अलग प्रकार से कैसे व्यक्त किया जा सकता है-
देश-प्रेम
प्रस्तुत निबंध में गद्य की विविध विधाओं में एक ही भाव देशप्रेम के भाव को विभिन्न प्रकार से व्यक्त किया गया है। यहां पर एक ओर तो हमारे देशप्रेम के भाव को हमारे देश के प्राकृतिक सौंदर्य के बारे में जानकारी से है। निबंध में समझाया गया है कि हम देशप्रेम तभी कर सकते हैं जब हम देश की हर वस्तु से प्रेम करेंगे। वरना हमारा देशप्रेम का भाव हमारे देश के बारे में कोरा ज्ञान तक ही सिमट कर रह जाएगा।
लेखक का दूसरी ओर कहना है कि लोग जो हमारे देश के प्राकृतिक सौंदर्य के बारे में अनजान हैं वे अपने देश से प्रेम कैसे कर सकते हैं? लेखक का कहना है कि ये लोग तो अपने देश की प्रकृति से अनजान हैं। ये लोग कहीं दूर बैठकर देश की समस्या के बारे में बिना यहां की हवा में सांस लिये कैसे जान सकते हैं? इन लोगों को कोयल और चातक पक्षियों के बारे में पता नहीं है। इन्हें किसान की समस्याओं के बारे में पता नहीं है। फिर ये किस प्रकार देशप्रेम की भावना से लैस होकर हमारे देश की आर्थिक प्रगति में अपना योगदान दे सकते हैं? इस प्रकार लेखक देशप्रेम की भावना को दो भिन्न प्रकार से व्यक्त कर गद्य की विभिन्न विधाओं में व्यक्त एक भाव देशप्रेम को अलग-अलग प्रकार से व्यक्त करते हैं। इसमें एक प्रेम देश के प्रति देश के बारे में जानकारी होने से अपने मूलरुप में है और दूसरा प्रेम लेखक की नजर में देशप्रेम तो है पर अपने देश की प्रकृति के बारे जानकारी के अभाव में यह प्रेम प्रभावोत्पादक नहीं है। हालांकि दोनों प्रेम एक ही भाव से उत्पन्न होते हैं और यह देशप्रेम का भाव है।